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________________ मोक्षतवे नवद्वारस्वरूम् ॥ (३२९) तीर्थनी स्थापना-थया पहेलांजेओ मोक्षगया ते अतीर्थसिद्ध. ६ गृहस्थना वेषमां जेओ मोक्षे गया ते गृहस्थलिंगसिद्ध. ६ तापस विगेरे अन्यदर्शनी साधुना वेषमां जेओ मोक्षे गया ते अन्यलिंगसिध्ध. ७ सर्वज्ञोक्तः रमोहरण ( -ओपो )-मुहपत्ति-चोलपट्ट (-इत्यादि मुनि योग्य घेष ) ते स्वलिंग कहेवाय, एवा प्रकारना मुनिना) वेषमा रह्यो छतो जे जीव मोक्षे जाय ते स्वलिंगसिद्ध. १ अहिं मोक्षे जतां वेष भले गृहस्थनो होय के तापसादि अन्य साधुनो होय परन्तु आचार विचार तो श्री सर्वज्ञो. क्त सिद्धान्तने अनुसारे ज होवा जोइए, नहितर पोतपोताना मानेला धर्मने अनुसारे क्रियाकांड करनारनो मोक्ष होइ शके ज नहिं अने जो दुनियामा वर्तता सर्व धर्मों मोक्षने आपमोर होय तो धर्म के अधर्मनो भेदज न रहे. . अहिं सर्वज्ञोक्त संयमना नियमो पाळवानी अरुचिवाळा जीयो एम कहे छे के “ गृहस्थ वेषमां पण मोक्ष थाय छे; प. ण संसार त्यागीने साधु बनी जवाथी ज. मोक्ष थाय छे पम नथी " ए प्रमाणे कहेनाराओए ख्यालमा राखवु जोइए के एषा । विचारथी साधुपणुं नहिं अङ्गीकार करी गृहस्थधर्म पोळवामां के गृहस्थना वेषमां कोई काळे पण मोक्ष प्राप्ति छ ज नहिं, परन्तु अहिं गृहस्थना वेषमां जे मोक्ष कह्यो ते जे जीवने सेसार त्याग करी साधुपणुं अङ्गीकार करवानी उग्र भावना प्र. गटी होय, ने ग्रहस्थपणाने काळा केदखाना तुल्य मानतो होय तेवा जीवने भावनानी प्रबळताथी शीघ्र केवळज्ञान उत्पन्न थइ जा. य ने आयुष्य अन्तर्मु०मात्र अल्प होय तो तेवाने तेवा गृहस्थ वेषे पण मोक्षे चाल्यो जाय, ने जो आयुष्य अधिक होय तो गृहस्थनो वेष त्याग करी अवश्य साधुपणानो वेष अंगीकार करे. एवो नियम छे. ( कृर्मापुत्र केवलि थया छतां पण ६ मास गृ.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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