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॥ मोक्षतत्त्वे नवद्वारस्वरूपम् ॥
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वोमांथी एक भाव उपर पण अविश्वास आवतो होय ने शेष सर्व अनन्त भाव उपर विश्वास बेसतो होय तोपण सम्यक्त्व होतुं न. थी, वली सर्व वात उपर विश्वास होय ते पण दर्शन मोहनीय कमर्नु आवरण खसवाथी ययेल होय तोज निश्चयथी सम्यक्त्व होइ शके, अन्यथा ते कमनु आवरण खस्या विना बाप दादानी रुढी इत्यादिक कारणयी थयेलो जे राग ते निश्रय सम्यक्त्वरूप नथी, अने ते दर्शन मोहनीय कमर्नु आवरण खस्यु छ के नहिं ते सर्वज्ञ जाणी शके छे, पण आपणा सरखा अल्पज्ञानी जीवो जाणी शके नहिं, मात्र धर्म उपर राग छे एटलं स्थूल बुधिए जाणी शकाय तेथी निश्चय पूर्वक सम्यक्त्व उत्पन्न थयु छ के नहिं ते आपणे जाणी शकीए नहिं: जेम के आपणने ज्वर आव्यो छे, एम सामान्ययी जाणी शकाय पण ते साध्य छे के असाध्य! अने ते केटली डीग्रीनो छ ? ते यथार्थ अनुभवी वैद्यज, नाणी शके तेम धर्म उपर राग के एम सामान्यतः जाणी शकाय पण ते राग सम्यक्त्वोत्पत्ति जेटली हदनो छ ? के कमी छ ? ते यथार्थ अनुभवी सर्वज्ञ विना कोण जाणी शके ?
.. अवतरण-आ गाथामां सम्यक्त्व एटले शु ? अथवा केवी बुद्धिवालाने सम्यक्त्व होइ शके ? ते कहे है,
मूळ गाथा ५२ मी, सव्वाइ जिणेसरभासियाई, वयणाइ नन्नहा हुंति। इअ बुद्धी जस्स मणे, सम्मत्तं निश्चलं तस्स ॥५२॥