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(३१८) ॥श्रीनवतत्त्वविस्तरार्थः ।। तव प्रगट थाय छे, अने विस्तार ज्ञानीने विशेष स्वरूप ज्ञान थतां ते ते स्वरूपनुं अस्तित्व अने कथननो, परस्पर अविरोध इत्यादि जोइने पण सम्यक्स प्रगट थाय छे,
प्रश्न-सम्यक्त्व ते पदार्थ छ के कोइ गुण छे ?
उत्तर-सम्यक्त्व ए पदार्थ नथी पण आत्मानो श्रद्धारूप गुण छे, अर्थात् जे वस्तु जेवारूपे छे ते वस्तुने तेवारूपे जाणवी ते सम्यक्त्व, अथव। देवने विषे देवबुद्धि, गुरुने विपे गुरुवुध्धि, अने धर्मने विष धर्मवुध्धि, ते सम्यक्त्व कहेवाय, ( अहिं सम्यक् एटले सारु- अने साधु-त्व एटले पणु अर्थात् सारापणु के साचापणु ते सम्यक्त्तव कहेवाय, ] अथवा सर्वज्ञे जे कयुं तेज सत्य ते, एवा प्रकारनी दृढ मान्यतो सेपण सम्यक्त्व कहेवाय इत्यादि सम्यक्त्वना अनेक अर्थ जाणवा.
प्रश्न-आपणने सम्यक्त्व छे के नहि ! ते जाणी शकाय के नहि ? . उत्तर:-आपणने सर्वज्ञे कहेला धर्म उपर तेमज सर्वज्ञे कहेली दरेक वात उपर घणो दृढ राग अने विश्वास छ, एम आपणु मन खात्री आपतुं होय अने आस्तिकय-अनुकंपा इत्यादि सम्यक्तत्वनां ६७ लक्षणोमांनां लक्षणो वर्तता होय तो व्यवहारथी एम मानी शकीए के आपणने व्यवहार सम्यक्त्व है, परन्तु निश्चय सम्यत्तव (वस्तुतः सम्यक्त्व) छे के नहि? ते बात तो सर्वज्ञज जाणे परन्तु आपणे छद्मस्थ जाणी शकीए नहिं
प्रश्न-शुध्ध धर्म उपर राग होय छतां आपणने सम्यक्त्व छे एम निश्चय पूर्वक केम न जाणी शकाय ? पोताना आत्माना गुणनी खात्री पोतानो आत्मा पण न करी शके ए केवु आश्चर्य ?
उत्तर-हे जिज्ञासु? शुध्ध धर्म उपर राग मात्रथी निश्चय सम्यक्य होइ शकतुं नथी. पण सर्वज्ञे कहेला पदार्थना अनन्त भा.