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॥ मोक्षतवे नवद्वारस्वरूपम् ॥
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अभावे ) अपबहुत्व ( सिद्धत्वावस्था आश्रयि ) संभवतुंज नथी, ___ अहिं लिंग आश्रयि जेम अल्पबहुत्व कछु तेम प्रसंगोपात शेष भेद आश्रयि पण अल्पबहुत्व (-समकाळे कया जीवो अल्प ने कया जीवो घणा सिद्ध थाय छे ते) कहेवाय छे,
वाळा ) जीव लिंगनपुंसक कहेवाय छे,
९ काक स्त्रीसरखो अने कंडक पुरुषसरखो विलक्षण वेष पहेरनार (-पावइया-हीझडा वगेरेमा सरचा वेषवाळा ) एषा पुरुषादि नेपथ्य नपुंसक गणाय, __ए ९ प्रकारमाथी नेपत्थ्य अने लिंग पुरुषादि ६ भेद मो. क्षगमन योग्य छे ने प्रण भेद मोक्षने अयोग्य छे.
प्रथम कहेला १६ नपुंसक संबंधि गाथाओ आ प्रमाणे छे. पंडए वाइए कीबे, कुंभी इसालु यत्तिय । सउणी तक्कम्मसेवी य, पक्खियापक्खिए इय ॥ १ ॥ सोगंधिय अ आसत्ते, एए दस नपुंसगा ।
संकिलिछत्ति साहूणं, पवावेउ भकप्पिया ॥ २ ॥ - अर्थः-पंडक-वातिक-क्लीब-कुंभी-इाळु-वळी ए प्रमाणे शकुनि-तत्कर्मसेवी-अने पाक्षिकापाक्षिक ए तथा सौगंधिक-आसक्त ए १० प्रकारना नपुंसको अतिसकिष्ट परि• णामी छे माटे मुनिओए दीक्षा आपवामां अकल्पनीय छे. त्यां • पंडगनां लक्षणनी गाथा
महिलासहावो सरवन्नभेओ मोढं महंत मउरा य वाणी । ससहयमुत्तमफेणय च, एआणि छप्पडगलक्खणाणि ॥ १ ॥
अर्थः -स्त्री सरखो स्वभाव-स्वर विलक्षण - अने वर्णादि विलक्षण -लिंग मोटु-वाणी कोमळ--मूत्र शब्द सहित, ने फीण ... विनानु-ए ६ पंडकनां लक्षणो छे इत्यादि.