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|| श्री नववश्वविस्तरार्थः ॥
३ मंत्रोपहत - मंत्रबळथी पुरुषवेद नाश पाम्यो होय तेवा. ४ औषध्युपहत - औषधिथी ( दधाथी के वनस्पतिथी ) जेनो पुरुषवेद हणाइ गयो होय तेवा.
५ ऋषिशत- मुनिना श्रापथी पुरुषवेद हणायो होय तेवा ६ देवशप्त - कोइ देवना शापथी पु० वेद हणायो होय तेवा. ए ६ प्रकारना कृत्रिम नपुंसको मोक्षे जवा योग्य छे ते संबंधि विशेष स्वरूप श्रीनिशिथसूत्रथी जाणवुः पुनः ए ६ जातिवडे पुरुष छे, परन्तु ते ते कारणोथी पुरुषवेद हणाया बाद तेओने नपुंसक वेदनो उदय होय छे, आ ६ नपुंसकोने पूर्वे कला १० नपुंसकोत् वेदनो उदय नगरदाहसरखो उत्कृष्ट होतो नथी, पण पुरुषवेद हणावाथी पुरुषवेदना अभावरूपे नपुंसक वेद ( न - नहि पुंसक - पुरुषपणुं अथात् पुरुषपणुं नहिं ते नपुंसक ) होय छे. तेथी वेदनो उदय पुरुषवेद करतां पण मंद होय छे,
पुनः पुरुषाकृति नपुं० - स्त्री आकृति नपुं० – ने नपुं० आकृतिवाळा नपुंसक एम त्रण प्रकारना नपुंसक आकृति भेदे छे ते पण त्रणे मोक्षगमन योग्य छे.
२ पुरुष - स्त्री - अने नपुंसक ए त्रणे वेद-लिंगने पथ्यना भेदथी ऋण ऋण प्रकारना होवाथी ९ प्रकारनाछे ते आप्रमाणे १ स्त्रीसंगमना अभिलाषवाळा जीव वेदपुरुष कहेवाय. २ पुरुषचिन्ह दाढी - मूछ-- इत्यादि लक्षणोवडे लिंगपुरुष. ३ पुरुषनो वेष पहेरेली स्त्रीआदि नेपथ्यपुरुष, ४ पुरुषनी इच्छावाळो जीव वेदस्त्री कहेवाय. ५. योनी -- स्तन -- दाढी मूछनो अभाव इत्यादि चिन्होवाळो जीव लिंग स्त्री कहेवाय.
६ स्त्रीनी वेष पहेरेला एवा पुरुषादि नेपथ्यस्त्री कहेवाय ७ स्त्री अने पुरुष ए बन्नेपर अभिलाषवाळो तीव्र वेदोदयी जीव वेदनपुंसक.
८ स्त्रीपणानां केटलाक चिन्ह स्तनादि होय ने केटलांक चिन्ह योनिवगेरे न होय, तेमज पुरुषपणानां केटलाक चिन्ह पुरुष चिन्ह वगेरे होयः ने केटलाक चिन्ह दाढी मूछ वगेरेने होय एवा प्रकारना ( स्त्री पुरुष लक्षणांना सद्भावने अभाव