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|| श्री नवश्वविस्तरार्थः ||
जो ते थाय ता ते अन्यरूपे केटलो काळ रहीने पुनः विवक्षित रुपमां आवे ? एम जे दर्शाव ते अन्तर ( एटले व्यवधाम --- तरो ) कहेवाय.
७ भागद्वार - ते पदार्थनी संख्या स्वजातीय शेष ( वा परजातीय ) पदार्थोंना केला मे भागे ( वा केटला गुणी ? ) छे ? एम दर्शाव ते भागद्वार.
८ भावद्वार - औपशमिक - औदयिक क्षायिक क्षायोपशमिक ने पारिणामिक ए भावमाथी ते पदार्थ कया भावमा अंतर्गत थाय छे ? एम दर्शाव ते भावद्वार अहिं जगतना दरेक पदार्थों ५ भावांना कोइपण एकादिक भावमा अंतर्गत होय छे. त्यां मोहनीय कर्मना उपशमथी उत्पन्न थयेलो जे भाव ( कषायादिकमी शान्ति ) ते औपशमिकभाव, ( उपशम सम्यक्त्व ने उपशम चारित्रए वे प्रकारो ने आ भाव मात्र सकर्मक जीवनेज होय छे. ) तथा कर्मना क्षयोपशमथी उत्पन्न थयेलो जे भाव ते क्षायोपशमिक भाव, (दान लाभ- भोग-उपभोग वीर्य क्षयोप० सम्यक्त्व-देश विरति सर्वविरति मतिज्ञान श्रुतज्ञान- अवधिज्ञान मनः पर्यव-ज्ञान-चक्षुर्दर्शन- अचक्षुदर्शन अवधिदर्शन-मतिअज्ञान श्रुतअज्ञान ने विभंग ज्ञान ए प्रमाणे १८ प्रकारनो छे ने ते सकर्मक जीवने होय छे ). तथा कर्मनाक्षी उत्पन्न थयेलो जे भाव ते क्षायिकभाव, ( केवलज्ञान - केवळदर्शन - दानादिपलब्धि - यथाख्यात चारित्र - ने क्षायिक सम्यक्त्व एम ९ प्रकारे छे ने ते जीवनेज होय छे. ) तथा कर्मना उदयथी उत्पन्न थयेलो जे भाव ते ओदयिक भाव, (अज्ञान- असिडत्व - अविरति ६ लेश्या -४ कषाय-४ गति -३ वेद-मिथ्यात्व - एम २१ प्रकारनो छे ने ते सकर्मक जीवने छे ) तथा ita अने अजीवने अनादिस्वभाव परिणमनरूप जे भाव ते पारि
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