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________________ || निर्जरातश्वपरिशिष्टम् ॥ ॥ निर्जरातस्वपरिशिष्टम् ॥ नरकगतिमां ? -- सम्यग्दृष्टि नारको जे कायपीडा सम्यक् प्रकारे सहन करे छे, परन्तु कोइने दुःख उपजावता नथी तेवा नारको काम कार्यशरूप १ निर्जराभेद होय छे. अने शेष मिथ्याहारको अकामकाय क्रेशरूप १ निर्जराभेदळे तिर्यंचगतिमां १२ - गर्भज तिर्यचो देश विरतिवंत होवाथी ६ बा तप अने ६ अभ्यंतर तपरूप सर्वे १२ सकाम निर्जराrastra अने मिथ्यादृष्टि तिर्यचोने १ अकाम कायशरूप १ निर्जराभेद होय छे. (२७०-ख.) tarani ४ - विनय - वैयावृत्य - अने स्वाध्याय ए ३ अभ्यंतर तप अने १ सकाम कायक्लेश मळी चार निर्जराभेद होय छे. देवो संघादिकनो विषय वैयावृत्य करे छे, अने जिन वचन श्रवणादि प्रसंगे पृच्छनादि स्वाध्याय पण छे. परन्तु सद्ध्यान- धर्मध्यानादिनो अभाव छे. मनुष्यगतमा १२ - मुनिने बार प्रकारना तपरूप सकाम निर्जरा होय छे माटे मनुष्यगतिमा १२ निर्जराभेद छे. ॥ बन्धतत्त्वपरिशिष्टम् || चारे गविना जीवोने चारे मकारना बन्धो होय छे. मात्र मनुष्यगतिमा अगीआरमा गुणठाणाथी स्थिति अने रसबन्ध हो - ता नथीवाकावन्ध विचार नवतपासाहित्य विगेरेथी जाणवो.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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