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________________ ॥ संवरपरिशिष्टम् ॥ २४२२२२ || संवरतत्त्वपरिशिष्टम् ॥ नरकगतिमां १२ -- नरकगतिमां १२ भावनारूप १२ संवर भेद होय छे, पण समिति गुप्ति परिषह अने यतिधर्म ए सर्व विरतिवंतने होवाथी अने सर्व विरतिनो नरकमां अभाव होवाथी समिति विगेरे ४५ संवरभेद न होय अने १२ संवरभेद होय. तिर्यचगतिमां १२ - नरकगतिवत्. देवगतिमां १२ - नरकगतिंवत्. मनुष्यगतिमां ५७ - - मनुष्यगतिमां सर्वेविरतिनो सद्भाव होवाथी संवरतत्वना सर्वे ५७ भेद होय. एकेन्द्रियमां - एकेद्रियमां संवरनो कोइपण भेद न होय, 0 (२५५-क.) कारण के सर्वविरतिना अभावे समिति विगेरे ४५ संवर न होय, अने मनयोगना अभावे १२ भावना पण न होय. दीन्द्रियमां ० - एकेन्द्रियवत्त्रीन्द्रियमां ० एकेन्द्रियवत. चतुरिन्द्रियमां ० एकेन्द्रियवत्. पंचेन्द्रियमां ५७ - - पंचेन्द्रियमां गर्भजमनुष्यने सर्वविरति अने म नोयोगना सद्भावे सर्वे ५७ संवरभेद होय छे. 0 पृथ्वीकायां ० कारण एकेन्द्रियवत - ० अपकायमां ते कायम 0 वायुकायमां वनस्पतिमां ० त्रसकायम ५७ - - त्रसकायमां गर्भजमनुष्यने ५७ संवरभेद होय. 19 55
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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