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________________ - - more (२३६) ॥ श्री नवतत्वविस्तरार्थः॥ शरीरे मल वगेरे उत्पन्न थाय तो तेनी दुगंछा न करता सम्यक् प्रकारे सहन करयो ते मल परिषह. मुनिने स्नान दातण वगेरे अंगविभूषा करवानो अधिकार नहिं होवाथी दांत अने शरीरे मेल-प्रस्वेद वगैरेनी उत्पत्ति थाय छे, परन्तु तेनो तिरस्कार करी मेल साफ करवाने स्नान के दातण वगेरे न आचरे पण स. भ्यक प्रकारे सहन करे ते मलेपरिषह कहेवाय. बीजो माणस मुनिने अत्यंत मान सत्कार आपे तो पण गर्व न आणे ते सत्कारपरिषह. १ दृष्टान्त--चम्पानगरीमा सुनन्द नामनो घणिक दरेक मुनिओने विना मूल्ये औषध आपेछे: एकवार मुनिना शरीरनो मल देखीने विचार कर्यों के आ मुनिओनी आचार सर्व रीते ठीक छे पण स्नानादि न करवं ते ठीक मथी इत्यादि अति अशुभ चितवन कयु ने ते काळक्षये मरण पामी कीशम्बी नगरीमा श्रेष्ठीपुत्र थयो त्यां दीक्षा , अंगीकार करी, ते पखते मुनिपणामां पूर्वकर्मनो उदय थवाथी शरीर महादुर्गंधमय बन्यु ने ते मुनिना शरीरनो धायु पण कोइ सहन करी शके नहि. मुनिओ पण तेने नगरमां फरवायी शासननी निंदा धारी नगरमां भिक्षा लेवा मोकलता नथी. आखरे ते मुनिए कंटाळी शासनदे. घीने आराधो पोतानं शरीर एवं सुगन्धीदार कराव्यं के बीजा ओ ते देहमी सुगन्धी लइने कस्तृरीनो पण परवा करता नथी. परन्तु नगरमां एवी अफवा फेलाइ के आ मुनि निरन्तर सु. गन्धी द्रव्योथी पोतार्नु शरीर वासित करे छे. एवो अपवाद सांभळी पुनः शासनदेवी आराधी पोतानुं शरीर प्रथमवत् द. गन्धमय कराव्यु जेम आ मुनिए मलपरि० सहन न कर्या तेम अन्य मुनिए न करवु. २ ए परिषहनुं द्रष्टान्त उत्तराध्य मांछे, पण कारणसर अत्रे दर्शाव्यु नथी.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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