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________________ (२३०) || श्री नवतश्व विस्तरार्थः ॥ antarni आव्या ते वखते अभवी एवा पालक प्रधाने प्रथम अपमान संभारी ते बगीचामां हजारो छूपां शुख दटावी राजाने hat लाग्यो के हे राजन मुनिपणुं दुष्कर लागवाथी आपनो साळी स्कंदक पांचसे सुभटोने साधु वेष पहेरावी आपनुं राज्य ले - वा आवेल छे, अने ज्यारे आप वन्दना करवा जशा त्यारे त मने हणीने तमारुं राज्य लेशे, आ कथनमां जो तमारे खात्री जोइए तो तेओए पोताना निवास स्थानमां छूषां शस्त्र दाव्यां छे ते देखा पछी राजाए ते दाटेलां शस्त्र देखवाथी अत्यन्त क्रोधवाळो थह सर्व मुनिओने बांधी पालकने कछु के आसने योग्य शिक्षा तारे हाथे करवी. बिलाडीने मळेला दूध सरखी आआज्ञा सांभळतांज पालक प्रधाने घाणी तैयार करावी अनुक्रमे एकेक मुनिने घाणीमां घाली पीलवा लाग्यो ते वखते आचार्य पण ते मुनिने समाधि संभळावे छे जेथी दरेक मुनि समाधि पामी अन्तकृत केवली थइ मोक्षे जाय छे. हवे ४९८ शिष्यो पोलाइ रह्या बाद एक बालमुनिने पीलवा रह्या छे त्यारे सूरिपक के प्रथम मने पीलीने पछी आ बालमुनीने पीलजे कारण मने इक राग होवाथी आ बाळमुनिंनुं कष्ट मारी नजरे नहिं जो शकाय छतां पण पालक पापीए सूरिने बधु दुःख उपजाववाना हेतुथी प्रथम बालमुनिने पील्यो, पथो आचार्यने कोधाग्नि व्याप्यो अने नियाणु कर्य के जो मारा तपनुं फल होय तो अहींथी काळ करीने हुं आखा देशनो नाश करनार थाउं. एम नियाणुं करता आचार्यने पण पालक पा पीप घाणीमां घाली पीली नाख्या. आचार्य काळ करीने अग्निकुमार देवमां उत्पन्न थया, त्यां अवधिज्ञानवडे पोतानी पू are जाणी दंडको राजाप आपली आज्ञा अने पालक पापीनु अघोर कृत्य जो अत्यन्त द्वेष आववाथी आ स्कंदक देवे ashी राजानों आखो देश बाळीने भस्म कर्यो. ते आजे दे डकारण्य नामे ओळखाय छे. आ पालकने शास्त्रमां अभवी जीव कहेलो छे, ए प्रमाणे जेम ४९९ शिष्योप वध परिषह सहन कर्यो तेम अन्यमुनिओए पण वधपरिषह सहन करवो परन्तु स्कंदकाचार्यत् चारित्र मोक्षफळ हारी जनुं नहिं.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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