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- ॥ आश्रयतत्त्वे क्रियावर्णमम् ॥ (२०५) अवतरण- आ गाथामां बीजी आज्ञापनिकी वगेरे ९ कि. याओ कहेवाय छे.
॥ मूळगाथा २४ मी. ॥ आणवणि विआरणिया, अणभोगा अणवकंखपञ्चइया अन्नापओगसमुदा-ण पिज दोसेरियावहियो ॥२४॥
॥ संस्कृतानुवादः ॥ आज्ञापनिकी वैदारणिकी, अनाभोगिक्यनवकांक्षमत्ययिकी अन्य प्रायोगिकी सामुदायिकी प्रेमिकी द्वेषिकीर्यापथिकी।
. शब्दार्थः आणवणि--आज्ञापनिकी क्रिया पओग-प्रायोगिकी क्रिया वियारणिया-वेदारणिकी क्रिया समुदाण-सामुदायिकी क्रिया अणभोगा-अनाभोगिकी क्रिया | पिज-प्रेमिकी क्रिया अणवकंखपच्चइया अनवकांक्षा-दोस द्वेषिकी क्रिया
प्रत्ययिकी क्रिया इरियावहिया-इ-पथिकी क्रिया अन्ना-बीजी २१ मो ( वगेरे)
गाथाथः- आज्ञापनिकी, वैदारणिकी, अनाभोगिकी, अनवकांक्षापत्ययिकी, वळी बीजी(२१ मी वगेरे)क्रिया सामुदायिकी, प्रेमिकी, उपिकी, अने ईर्यापथिकी क्रिया. (ए सर्वमली २५ क्रियाओथी कर्मनुं आगमन थाय छे. )
विस्तरार्थ:___ १७ आज्ञापनिकी क्रिया-जीवने आज्ञा-हुकम फरमावतां जीवआज्ञाप०, अने अजीवने आज्ञा फरमावतां.( जादुगरवगेरेने ) अजीव आज्ञाप० क्रिया गणाय. अहिं आज्ञा० ने बदले आनयनिकी क्रिया कहवाय छे ते पण जीव वा अजीव वस्तुने ।