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________________ ॥ अनीवतत्त्ववर्णनमः ॥ आकाशाऽस्तिकाय-द्रव्यथी -क्षेत्रथी लोकालोकप्रमाण -काळ्थी अनादि अनन्त-भावथी वर्णादि रहित-गुणथी अवकाश दाता-अने आकृतिथी ' गोळा ममान जीवाऽस्तिकाय-द्रव्यथी अनन्त, क्षेत्रथी एक जीव आश्र. वि जघन्य अंगुलनो असंख्यातमो भाग, उत्कृष्टथी एक तथा अनेक जीव आश्रयि सर्व लोक प्रमाण-काळथी अनादि अनन्त-भावथी वर्णादि रहित-गुणथी ज्ञान दर्शनादि गुण युक्त-अने आकारथी देहाकार अथवा (समुद्घातापेक्षाए लोकाकार.) पुद्गलाऽस्तिकाय-द्रव्यथी अनन्त-क्षेत्रथी लोक प्रमाणकाळयी अनादि अनन्त-भावथी वर्ण-गंध-रस-स्पर्श युक्त-गुणथी पूरण गलन स्वभावो-आकृतिथी दीर्घ-चतुरस्र-त्रिकोणवर्तुल-परिमंडल. काळ-द्रव्यथी १-क्षेत्रथी २१. द्वीप प्रमाण-काळयी अनादि अनंत-भावधी वर्णादि रहित---गुणथी वर्तनादि लक्षण युक्त आकृतिथी अवक्तव्य इत्यादि ६ द्रव्य यत्किंचित् स्वरूप का. ॥ द्वितीयाजीवतत्त्वविस्तरार्थः समाप्तः॥ O MRAM १ एमां पण लोकाकाशनो आकार सुप्रतिष्ठ सरखो, अने अलोकाकाशनो आकार पीला गोळा सरखो छे. २ काळ वास्तविक रीते द्रव्य नहि होवाथी काळनो अमुक आकार छे. एम कहे, अशक्य छे.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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