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________________ ( १२२) ॥ श्री नवतत्त्वविस्तरार्थः॥ उत्तर--हे जिज्ञासु ! धर्माऽस्तिकाय द्रव्य जीव अने पुद्गलने पाछळथी धक्को दइने अथवा आगळ्यी खेचीने गतिक्रिया करावतुं नथी पण जीव अने पुद्गल पोतेज गतिक्रिया करवा समर्थ छे, छतां पक्षीने उडवामां जेम वायु, मत्स्यने तरवामां जेम जळ, अने चक्षुने देखवामां जे सूर्यादिनो प्रकाश अपेक्षा कारणरूप छे. तेम धर्मास्ति० पण जीव-पगलनी गतिमां अपेक्षा कारणरूप छे. कारण ४ प्रकारनां छे, उपादान कारण-अपेक्षाकारण-निमित्तकारण अने- असाधारण कारण. तेमां घट बनाववामां कुंभार कर्ता छे त्यां मृत्तिका (माटी) ए घट रचनामां उपादान कारण, दंड चक्रादि निमित्त कारण.चक्र भ्रमण(चाकडानु भमp.)असाधारणकारण, अने आकाशादि जेम अपेक्षा कारण छे; तेम जीवपुद्गल ने गतिक्रिया करवामां अने स्थिर थवामां अनुक्रमे धर्मा० अने अधर्मा० द्रव्य अपेक्षा का. रणरूप छे.बीजु अधिक विवेचन पूर्व गाथामां दर्शाव्यु छे. तथा पूरण ( पूरावु-मळवू ) अने गलन (गळवू-झरवु-विखर-छूटा पडवू) धर्मयुक्त जे पदार्थ ते पुद्गल द्रव्य कहेवाय. अहि परमाणु एज पुद्गल द्रव्य छे. ए परमाणुनो स्कंधरूपे मलवा योग्य, अने स्कंधथी विखरवा-छूटा पडवारूप धर्म होवाथी परमाणु ते पुद्गल कहेवाय छे. दरेक परमाणु मलबा अने विखरवाना धर्मवाळो छ, परमाणुओ ज्यारे परस्पर मळे छे त्यारे स्कंध बने छे, अने छूटा पडे छे त्यारे पुनः परमाणुज रहे छे. ए प्रमाणे परमाणुओ वारंवार द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी, यावत् अनंत प्रदेशी स्कंधरूपे परिणमे छे ( मके छे ), अने ते स्कंधोथी छूटा पण पडे छे, त्यां कोइ पण एक परमाणु जघन्यथी १ समय अने उत्कृष्टथी असंख्य समय सुधी परमाणुरूपे छूटो रहे छे, तदनंतर अवश्य स्कंधपणे परिणमे छे. ए परमाणुनो जघन्य उत्कृष्ट काळ कह्यो. पुनः ए परमाणु ज्यारे स्वरमां
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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