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॥.श्री नवतत्वविस्तरार्थः॥
- ॥ व्यवहारिक काळy स्वरूप. ॥ • आगल "समयावलि मुहुत्ता" ए गाथामां कहेवाशे ॥३४॥ ..
॥स्कंध, ॥ . कोइपण पदार्थनो आखो भाग के जे अनेक अणु 'मलीने थयो होय ते ते पदार्थनो स्कंध कहेवाय. जेम अखंडमोती, अखंड मोदक, अखंड पत्थर ए सर्वतुं अखंड पणु स्कंध कहेवाय. तेम चौदराज प्रमाण बज्राकार धर्मास्तिकाय ते धर्मास्तिकाय स्कंध, ए प्रमाणे चौदराज प्रमाण बज्राकार अधर्मा० ते अधर्मा० स्कंध, अनंत योजन प्रमाण आकाश नो गोलो ते आकाशा० स्कंध, ( लघुमां लघु अंगुलना असंख्योतमा भाग जेवडो अने वधुमां वधु १४ राज प्रमाण मोटो असंख्य प्रदेशात्मक एक जीव ते जीवस्कंध,(अजीवना प्रकरणमां जीवस्कंधनु प्रयोजन नथी तो पण प्रसंगतः जीबद्रव्यमां पण स्कंधत्वप्राप्ति दर्शाववाने अहिं कहेल छे.)एक आकाश प्रदेश बे आकाश प्रदेश त्रण आकाश प्रदेश, यावत् असंख्य आकाश प्रदेश ( १४. राज प्रमाण ) जेवडा द्विप्रदेशी बे परमाणुनो बनेलो, त्रिप्रदेशी, चतुः प्रदेशी यावत् अनंत प्रदेशी पुट्ठल विभागो पुद्गल स्कंध कहेवाय.
१ जो " आखो भाग " ते स्कंध एम कहेवामां अवे तो परमाणुने पण स्कंध कहेवा पडे ते अनिष्ट छ माटे " अनेक अणुमलीने '' एम का छे.
२ स्कन्दन्ते-शुष्यन्ति पुद्गल विचट ने न. धीयन्ते-पृष्यन्ति च पुद्गलचटनेने ति स्कन्धाः ' आ व्युत्पत्तिथी पुद्गलनु भरा अने विखरावं जे मां थाय ते स्कन्ध कहे वाय छे. माटेज प्राचीन महापुरुषोये धर्मास्तिकायादि शाश्वत द्रव्योमा सकन्ध व्यवहार मान्यो नथी. केटाक माने हे ते अपेक्षाये व्याख्यान.