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________________ ॥ अजीवतस्त्वे धर्मास्तिकायवर्णनम् ॥ (१०५) कर्मनी प्रेरणाथी जेम गति करी शके छे, तेम पुगलो पण पोताना स्वभावथी तथा जीवनी प्रेरणाथी पण ' गति करी शके छे, ए प्रमाणे ते बन्ने द्रव्यो गति क्रिया ( कार्यमा ) परस्पर संबंध वाला तथा संबंध विनाना पण छे जो के जीव- पुद्गलोनी गति क्रिया ( कार्य ) उपर बताव्या प्रमाणे प्रवर्ते छे, तोपण ते क्रियामां अवश्य अन्यद्रव्यनी अपेक्षा छे, पक्षिने ऊडवामां वायु, मत्स्यने चालवini जल, चक्षुने बाह्य वस्तु देखवामां सूर्यादिप्रकाश विगेरे जेम उपकारी छे, तेम जीव - पुद्गलनी गतिमां धर्मास्तिकाय उपकारी द्रव्य छे. कारण असाधारण गुणवाळो पदार्थ होय तेज बस्तुतः उपकारी कहवाय, माटे जो के लाकडी विगेरे बाह्यपुद्गलो अथवा जीव प्रयोग गतिकियामां कारण के तोपण ते लाकडीमां अने जीवप्रयोगमां गतिसाहाय्यकनामनो असाधारण गुण नथीं कारण ते बीजी- क्रिया ( कार्यों ) मां पण उपकारी थाय छे. अने धर्मास्तिकायां ते गति साहाय्यकत्व गुण असाधारण छे माटे ते उपकारी छे, वायुथी पक्षि उडी शके छे, मत्स्य जल होय तोज चाली शके छे, अने सूर्यनो प्रकाश होय तोज चक्षु वस्तुने देखी शके ते धर्मास्तिकाय द्रव्य होय तोज जीव पुद्गलनी गतिक्रि या यह शके अन्यथा नहि ! ए धर्मास्तिकाय द्रव्यना निर्विभाज्य विभागो ( प्रदेशो) असंख्य छे ने ते दरेक प्रदेश परस्पर स्पर्श संथ साथे साथे जोडाइने रह्या छे जेथी ए पदार्थ १४ राज जेटलो जग्या रोकीने रह्यो छे, अने तेथी सुप्रतिष्ठक आकारे रहे १ श्री प्रज्ञापुनाजी " विगेरेसां पुद्गलना दशविध परि गामांमां गति परिणाम बताव्यो छे तेमज : श्री भगवतीजी " मां पण परमाणु उत्कृष्टगतिए एक समये उर्ध्वलोकान्तथी अधोलोकान्त (२४राज क्षेत्र ) सुधी गति करी शके छे. तेम वर्णव्युं छे.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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