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________________ ॥ जीवतत्त्वे उच्छवासायुःमाणवर्णनम् ॥ (८७) श्वासोच्छवास गणाय छे, आ श्वासोच्छवास पण पुद्गलनोज विकार छे; श्वासोच्छवासनां पुद्गलो सूक्ष्म होदाथी इन्द्रियग्राहय नथी. मुखी जीवोने श्वासोच्छवास लेवा मूकवानो व्यापार बहु अल्प होय छे, अने दुःखी जीवने श्वासोच्छवास व्यापार अधिक होय छे, जेथी देवताओ वधुमां वधु १६॥ मासने अन्तरे श्वासोच्छवास लेवा मूकवानी क्रिया करे छे, अने अति दुःखी एवा नारक जीवो प्रति समय श्वासोच्छवास क्रिया करे छे. शेष जीवो अनियमित अन्तरे श्वासोच्छवास क्रिया करे छे. पुनःश्वासोच्छवास- ग्रहण काययोगवडे अने विसर्जन पण काययोगवडे थाय छे, परन्तु मन ओ वचननी पेठे काययोगे ग्रहण अने मन वचनयोगे विसर्जन थाय छे तेम नश्री. 'जेथी श्वासोच्छ्वास योग' एवो व्यपदेश. थतो नथी (जेनु विस्तृत कारण श्रीविशेषावश्यकमां छे.). " ॥ दशमों आयुष्य प्राण. ॥ __ जेना वडे जीव ते भवनी अंदर अमुक काळमुधी टकी शके छ ते आयुष्य कहेवाय, अथवा जेना वडे जीव परभवमा अवश्य जाय छे ते आयुष्य कहेवाय, अथवा विवक्षित भवमा जेटला काळमुधी जीव रहे तेटलो काळ आयुष्य कहेवाय.एआयुष्य पण पुद्गलनो समुदाय छे के जे पुद्गल समूहनी सहायवडे जीव जीवे छे. ए आयुष्य द्रव्यायुष्य अने कालआयुष्य एम २ प्रकार छे. ॥ द्रव्यायुष्य अने कालआयुष्य. ॥ आयुष्यकर्मनां जे पुद्गलो ते द्रव्यायुष्य, जेम तेल विना दीपक रे आचक्षते आनन्ति प्राणन्ति इत्यनेनान्तःस्फुरन्ती उच्छवास निःश्वासक्रिया परिग्रह्यते, उच्छवसन्ति निःश्वसन्ति इत्यनेन तु बाह्या."
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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