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________________ ॥जीवतत्त्वे मनवळपाणवर्णनमः ॥ . (७३) ॥छटो मनबल प्राण.॥ जे द्वारा संज्ञि जीव मनन चितवन करी शके ते मन कहेवाय. ए मन मनोवर्गणा रूप पुद्गलपरमाणुओना समुदायतुं बने छे. वळी ए मन मात्र गर्भज तथा औपपातिक ( देव-नारक) जीवोनेज होय छे, मन पण द्रव्यमन अने भावमन एम बे प्रकारनुं छे. त्यां मनःपर्याप्ति नामकर्मना उदय वडे काययोगे मनोयोग्य वर्गणा (पुद्गल समूह ) ग्रहण करीने चिन्तवनव्यापारमा जोडायेल मनो योग बडे मनपणे ( चितवन व्यापारना साधन पणे) परिणमावी, अवलंबीने विसर्जन करे ते (अथवा अपेक्षाए तेनी पर्याप्तिनो) पुद्गल समूह ' द्रव्यमन कहे गय, अने ए बन्ने प्रकारना द्रव्यमन रूप पुद्गलपरमाणुना आलंबन वडे ( सहाय वडे) जीवनो जे चितवन व्यापार ते 'भावमन कहेवाय. ए हेतुथी ? मणपजत्तिनामकम्मोदयतो जोगे मगोदव्धे घेतुं मणतेण परिणामिया दवा दवमणो भन्नइ इति लोकप्रकाशे नंद्यध्ययनचूर्णि पाठ.)तथा श्री तत्त्वार्थसूत्रमा मनःपर्याप्तिरूप करण पुद्गलो के जेने सर्वात्मप्रदेशवर्ती कमां छे ते पण अपेक्षाए द्रव्यमन कही शकाय, कारणके अयोगीने जे द्रव्यमन का छे ते मनोवगणारूप नहिं पण मनःपर्याप्तिरूप संभवे छे. (दिगंबरो द्रव्य मनने अष्टदलपद्माकार हृदयस्थाने रहेलं माने छे परन्तु एक देश भागमा रहेला मनःकरणथी उपयोग प्रवृत्ति न संभवे, कारणके उपयोग प्रवृत्ति तो सर्व आत्मप्रदेशवर्ती होय छे माटे मनने ह. दयस्थमात्र गणवु युक्त न गणाय तेम ज सुखदुःखादिना अनुभवरूप मानसज्ञान सर्वात्मप्रदेशे संभवे छे. वळी सर्व बाह्य-अभ्यन्तर शरीरव्यापी त्वगिन्द्रियथी सर्व प्रदेशे स्पर्शज्ञान थाय छे ते पण मनना सर्वात्मप्रदेशव्याप्तत्व विना होइ शके नही. माटे सनने नैयायिकादिनी माफक अणु मानQ के नियतदेशस्थ मानवं ते केवळ अनुचित छे. ) अहिं मननुं विसर्जन मनोयोगवडे गणाय छे. २ मणदव्यालंवणो जीवस्स मणवावारो भावमणो भन्नइ
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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