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॥ जीवत पञ्चेन्द्रियमाणवर्णनम. ॥
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खुरपकारे ( अखाने आकारे ) छे. - अभ्यन्तर घ्राणेन्द्रिय 'काहल 'नामना वाजत्र विशेषने आकारे छे. अथवा ' अतिमुक्तकपुष्पना आकारे छे. - अभ्यन्तर चक्षुरिन्द्रिय मसुर वा चंद्र सरखा आकारखाकी छे. - अने अभ्यन्तर श्रोत्रेन्द्रिय कदंबवृक्षना पुष्प सरखा आकारनी मांसनी एक गोळी रूप छे. पुनः बाह्यनिर्वृत्ति इन्द्रियो ( एटले इन्द्रियोनी वाह्य आकृतिओ ) तो दरेक जातना जीवनी जुदी जुड़ी होवाथी नियमित आकार कही शकाय नहि, जेमके कर्णेन्द्रि यनी बाह्याकृति मनुष्यने वे चक्षुओने पडखे लंबवर्तुल उंचा नीचा भागयुक्त छीप सदृश छे, अने अश्वनी बाह्य कर्णेन्द्रिय नीचेथी पोळी अने उपरथी हीन थती छेडे अणीदार अने वळी गयेला पडवाळी चक्षुओनी पडखे उपर होय के अने हाथीनी तो तद्दन पडा सरखी बाह्यकर्णाकृति होय छे. ए प्रमाणे बाह्याकृतिओ (बाह्य निवृत्तीन्द्रियो) दरेक जातिना जीवने भिन्न भिन्न होवाथी अमुक नियमित आकारनी कही शकाय नहि, अने अभ्यन्तर आकृतिओ सर्व जीवने एक सरखा आकारवाळी होवाथी उपर कहेली छे. || इन्द्रियोनी लंबाई पहोळाइ अने जाडाइ ॥
अभ्यन्तर स्पर्शेन्द्रिय अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटली जाडी, अने स्वस्वदेह प्रमाण लांबी होळी छे. जेथी ए इन्द्रियनुं अति पापड त्वचाना उपर अने अंदरना भागमां जूर्दु नहिं पण एकज पथराय ले, परन्तु स्वचाना मध्य भागमां ( एटले त्वयानी
9 पडघम नामनुं वाजत्र.
२ अतिमुक्तक प वृक्ष विशेष छे.
३ स्पर्शेन्द्रियनी लंबाई होळाइ उत्सेधांगुलने अनुसारे छे, अने रसनेन्द्रियादिनी लंबाई होळाइ आत्मांगुलने अनुसारे जाणवी. पुन: जाडाइ तो सर्वनी उत्सेधांगुलथी संभवे छे. ए संबंधि विस्तार ग्रंथान्तरथी जाणवो.