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॥ जीवतत्त्वे पञ्चेन्द्रियप्राणवर्णनम् ॥ (५९) विस्तरार्थः-पूर्वगाथामां पर्याप्तिनुं वर्णन कर्याबाद हवे आ गाथामां ते पर्याप्तिनां कार्यरूप प्राणोन विवेचन कराय छे.
॥५ इन्द्रिय ५ प्राणो. ॥ आत्मा जे इन्द्रियोद्वारा विषय ( पदार्थ ) जाणी शके छे, ते इन्द्रियो स्पर्शन-रसना-घाण-चक्षु अनेश्रोत्र ए प्रमाणे पांच छे. इन्द्रिय शब्द इन्द्र उपरथी बनेलो छे, इन्द्र एटले आत्मा तेनुं जे चिहते इन्द्रिय कहेवाय, ते इन्द्रिय द्रव्येन्द्रिय अने भावेन्द्रिय एम बे प्रकारे छे, पुनः निर्वृत्ति अने उपकरण एम द्रव्येन्द्रिय के प्रकारनी छे, पुनः निवृत्ति अने उपकरण द्रव्येन्द्रिय पण अभ्यन्तर अने बाह्य एम बेबे प्रकारनी छे, तथा लब्धिभावेन्द्रिय अने उपयोगभावेन्द्रिय एम भावेन्द्रिय पण बे प्रकारनी छे, तेनी भेद स्थापना आ प्रमाणे छे.
. ५ इन्द्रिय
द्रव्येन्द्रिय
भावेन्द्रिय
निवृत्ति
उपकरण.
लब्धि
उपयोग
अभ्यः बाह्य अभ्यः बाह्य
॥ इन्द्रियभेदना अर्थ. ॥ इन्द्रियोने स्थाने इन्द्रियोने आकारे गोठवायला विषय ग्रहण करवानी शक्तिवाळा अतिस्वच्छ- पुद्गलो ( इन्द्रियना पुद्गलो) अथवा आत्मप्रदेशो ते 'अभ्यन्तरनिवृत्ति द्रव्येन्द्रिय' कहेवाय. जेम चक्षुमां कीकी इत्यादि, एमां अभ्यन्तर स्पर्शननिर्वृत्ति द्रव्येन्द्रियनो आकार दरेक जीवनो देहना आकारसरखो होय छे, इत्यादि सर्व