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________________ wwmummmmmmameemasomainner धर्मकथानुयोग पण वेमां संगत ज छे अने तेथीज आ ग्रन्थ महस्पद भोगवनारो छे.. जैनदर्शनमां नवतत्वग्रंथ एटलो षधो प्रसिद्ध अने महिमा. शाली छे के जेना परिचयमाटे कांइ पण बोलवू के लखवू ते एक "लंकावासि मानवोनी आगल सुवर्णवर्णन तुल्य". सूत्रथी सिद्धान्त भणवाना अनधिकारी श्रावक वर्गमां पण उत्तमपंक्तिना था. वको नवतत्वज्ञामथी सुशोभित थइ रह्या छ जे माटे सकल आग. मोमां पूज्यतमश्री भगवती आदिमां श्रावकोनी ज्ञानसमृद्धि व र्णन करतां " अभिगयजीवाजीवी उबलद्धपुण्णपावा आसंवसंवरणिज्जर किरियाहिगरणबंधप्पमोक्खंकुसला" वि. शेषणान्तर्गततया नवतखोनी मुख्यता दर्शावी छे, वली सकलतस्वसंग्रह सूत्र समवायांगवीज-श्रुतरस्ननिॉनस्कन्ध-दृष्टिवाद. ना मरणयी पुष्ट-तस्वोरूप पत्र फुल अने मुक्तिफलवाळो चतुर्थोपाङ्ग श्री पन्नवणा सूत्र कल्पवृक्ष पण आ सश्वाना मूल उपरज रुढ थयेलो छे. . - जुओ श्री पन्नवणावृत्तिकार पूज्य आचार्य भगवान् मलयगिरिजी महाराजना वचन " सर्वे च ते भावाश्च सर्वभाषा 'जीवाजीवाश्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षाः । तथाहि-अस्यां प्रज्ञापनायां षत्रिंशत् पदानि, तत्र प्रज्ञापनायट्रवक्तव्य. विशेषचरमपरिणामसंज्ञेषु पञ्चसु पदेषु जीवाजीवानां प्र. ज्ञापना। प्रयोगपदे क्रियापदे धाश्रवस्य 'कायवाङ्मनाकमयोग आश्रय' इति वचनात्। कर्मप्रकृतिपदे बन्धस्य प्ररूप. णा। समुद्घातपदे केवलिसमुद्घातप्ररूपणायां संवरनिर्जरामोक्षाणां त्रयाणां, शेषेषु तु स्थानादिषु पदेषु क्वचित्कस्यचिदिति " श्रमण भगवान् जगद्वन्धु परमात्मा श्री महावीर प्र. भुना चरमोपदेशरूप अपृष्टव्याकरण श्रीउत्तराध्ययनमूत्रना मोक्ष
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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