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________________ (५) वामां समर्थ छे. २ चरणकरणानुयोग मुक्तिमार्ग, साधु श्रावक धनो आचार, क्रिया, शुभभावमां केवी रीते वर्त्ततुं, अशुभभावमांथी केवी रीते नवं, हेयोपादेय कर्त्तव्याकर्त्तव्यादि विवेक, पापबन्धनो त्याग शी रीते थाय, इत्यादि संवरना अनेनिर्जराना विचारोने बताये के, गणितानुयोग - जीवाजीवादि द्रव्योनी संख्या, परस्पर अल्पबहुत्व, कार्यस्थिति, भवस्थिति, संवेधादि, ज्योतिश्चक्रना चारादिनु गणित, द्वीप, समुद्र, नरक, विमानादिक्षेत्रमान तथा तेनी गणत्री विगेरे विचारो दर्शावे छे. ४ धर्मकथानुयोग - महापुरुषोनी जीवनप्रणालिक, मांथी झलकती उत्तमनीति, सदाचरण, पूर्वकालीन इतिहास, दीर्घदृष्टिए विचारता पूर्वापरकालनो अनुभव, उपादेयवस्तु प्रत्येनो आदरभाव, असदाचारिना चरित्रथी थती असदाचार प्रत्येनी गर्दा साधु, श्रावकाना आचार प्रत्ये पडतो उत्तम चलकाट, विगेरे विचारो समजावे छे. आ चारे अनुयोगो पैकी आगमोनी अपेक्षाये सूत्रकृतांगमां द्रव्यानुयोग प्रधान छे. आचारांगमां चरणकरणानुयोग, जंबूदीपपन्नन्ति आदिमां गणितानुयोग, ज्ञाताकांगादिमां धर्मकथानुयोग प्रधानतया वर्तेछे. आ नव प्रकरण पण जो मुख्यतया द्रव्यानुयोगप्रधान छे, तो पण बीजा अनुयोगोना वर्णनमां ते अलग पडतुं नथी. कारण समिति गुप्ति परिषद यतिधर्म भावना आदिना तथा हेयतया आश्रवबन्धादि उपादेयतया संवर-निर्जरा आदिना वर्णनथी चरणकरणानुयोग पण तेपां छे. रूप्यरूयादिभेद, मोक्षम अलबहुत्वादि वर्णन विगेरेमां गणितानुयोग, समिति गुप्ति साचवनार तथा परिषहो जय करनार पंदरभेदमां सिद्धिपद पामनार महापुरुषांना वर्णनद्वारा १ चारे अनुयोगोना जुदा पणा संबन्धी विचार मा जुओ साथेनी प्रस्तावना पेज ३-४
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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