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________________ (५५) सादि ३ पर्याप्तिओन कार्य जे उच्छवासादि वर्गणाओनुं ग्रहण ते उच्छवासादि पर्याप्तिरूप पुद्गलो रचाया वाद थाय छे. परन्तु ते उच्छवास पर्याप्ति स्वरूप पुद्गलोनो रचना प्रारंभ तो प्रथम समयथीज शरु थयेलो छे, माटे सर्वे पर्याप्तिओनो एटले पर्याप्ति संबंधि पुद्गलोनो रचना प्रारंभ तो प्रथम समयथीज शरु थयेलो गणाय, परन्तु ते पर्याप्तिरूप पुद्गलोनी समाप्ति तो पूर्वे कह्या भ. माणे अनुक्रमेज थाय छे. ते आ प्रमाणे--- . प्रथम समये जे पुद्गलो सामान्य स्वरूपवाळां ग्रहण कयों ते पुद्गलोमांथी तेज समये केटलांएक पुद्गलोने शरीरपणे स्थाप्यां, केटलांएक पुद्गलोनी अभ्यन्तर निर्वृत्तिइन्द्रिय बनावी, केटलांएक पुगलो उच्छवास करणरुपे रच्यां, केटलांएक पुद्गलो भाषाकरणरूपे रच्यां, अने केटलांएक पुद्गलो मनःकरणरूपे रच्यां, अने शरीरादिपणे नहिं परिणमो शके एवां पुद्गलोनो बोजे समये त्याग करशे. ए प्रमाणे प्रथम समये पुगलो ग्रहण करवा. नी जे आत्मशक्ति ते पुद्गलोना ग्रहण निमित्ते प्रवर्ती ते " प्रथम समये आहारपर्याप्ति समाप्त थइ” एम कहेवाय, ___ शंका-पुद्गलोनो आहार तो प्रथम समय बाद पण चालु रहेवानो छे तो प्रथम समये आहारपर्याप्ति रूप शक्ति समाप्त थइ केम गणाय ? उत्तर-ग्रहणकार्य गमे तेटला काळ सुधी चालु रहे पण ग्रहणशक्ति तो ग्रहणकार्य चालु थयानी अपेक्षाए प्रथम समये संपूर्ण थइ गणाय. अने ते प्राप्त थयेलो शक्ति जेटला काळ सुधी टके तेटला काळ सुधी ग्रहणकार्य थवामां कोई विरोध नथी. ___ शंका-प्रथम समये प्राप्त थयेली शक्तिवडे पुद्गल ग्रहण कया? के पुद्गलग्रहण बडे शक्ति आवी कहेवाय ?
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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