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________________ (५४) शरीर वर्गणा योग्य छे अर्थात् शरीर निष्पादन करवामां (नि. ष्पत्तिमां ) समर्थ छे, ( ते पुद्गलोवडे अथवा ते पुद्गगलोर्नु शरीर बनावq ) ते शरीर पर्याप्ति. तथा घरैनी भींत विगेरेनी उंचाइ रूप विचार करवानो छे तो पण (भीत विगेरेथी घर रच्ये छते पण) तेने केटलां द्वार बनाववां, अने तेमां पण आ (अमुक) द्वार पूर्वमुखे अने आ द्वार उत्तरमुखे पेसवा निकळवा माटे. ( ठीक पडशे एम ) विचाराय छे ( बनावाय छे ) तेम इन्द्रियपर्याप्ति पण आत्मोपयोगनी वृत्तिए पेसवा निकळवाना द्वार सरखी छे. ए प्रमाणे उच्छवास पर्याप्ति अने भाषापर्याप्ति पण एज दृष्टांतवडे समजवी, ( कारण के ) दार्शन्तिकना भेदथी द्रष्टांत भिन्न होय छे (पण अहिं दार्शन्तिकनो भेद नथी तेथी दृष्टांत भिन्न आप्यु नथी, कारण के उच्छवास अने भाषामां पण प्रवेश निर्गमन वृत्ति इन्द्रियपर्याप्ति तुल्यज छे ). त्यारबाद द्वार सहित घर बन्ये छते पण अहिं आसन ( दिवानखानुं ), अहिं सूबान ( शय्यागृह ), अने अहिं भोजन भूमि ( भोजनगृह ) बेसवा सूवा अने जमवानी क्रियाओ करवा माटे गृहस्थो विचारे छे (बनावे छे ) तेनी पेठे हितनी प्राप्त अने अहितना त्यागनी अपेक्षारूप लक्षणवाळी मनःपर्याप्ति जाणवी. ए प्रमाणे ए ६ पर्याप्तिओने जे कर्म बनावे ते कर्म पयाप्ति नामकर्म ते भट्टीमां मुकेला तैयार थयेला घट सरखं जाणवू अने अपर्याप्ति नामकर्म तो नहिं बनेल अने बनेल पण विनाश पामवा योग्य घटतुल्य छे, घट सरखं छे. (इति तत्त्वार्थ भाषान्तर समाप्त. आ भाषान्तरमां कौंसमां आवेला शब्दो लेखकना छे). पर्याप्तिओनो प्रारंभ अने पूर्णता एटले शुं ? ६ पर्याप्तिओमां प्रथमनी ३ पर्याप्तिओनुं कार्य (शक्ति अने शक्तिथी यतुं कार्य ) प्रथम समयथीज प्रारंभायुं छे, अने उच्छवा
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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