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कर लेते हैं । लड़के-लड़की के खाते की रकम, उनके खानेपीने विवाह-शादी आदि में लगा देते हैं और गाय के खाते की रकम, घर में पली हई गाय के खिलाने-पिलाने में खर्च कर देते हैं । यदि घर के लड़के-लड़की या गाय के खर्च से कुछ रकम बची रही तो छात्रालय, गोशाला आदि में देकर चोर होते हुए भी अपनी गणना दानवीरों में कराने लगते हैं।
कई व्यापारी, अपढ़ ऋण लेने वाले को एक-सो रुपया देकर, दस्तावेज एक शून्य अधिक–अर्थात् एक हजार का लिखवा लेते हैं । इसी प्रकार ब्याज, सवान, ज्योढ़ान प्रादि में भी छल से दुगुना तिगुना कर लेते हैं ।
कई लोग किसी सार्वजनिक संस्था या लोकोपयोगी कार्य के लिये धन एकत्रित करके, या तो एकदम से दाब बैठते हैं, या नाम के लिये थोड़ा-बहुत कुछ खर्च करके, शेष धन हजम कर जाते हैं । कोई-कोई ऐसी संस्था या कार्य को कुछ समय तक, जब तक कि उसके नाम पर धन प्राप्त होता रहता है, चलाते भी रहते हैं और उसमें अपना मतलब भी गांठते रहते हैं। ___ कइयों ने विज्ञापनबाजी को चोरी का साधन बना रखा है । पत्रों, हैण्ड-बिलों आदि द्वारा विज्ञापन करके लोगों से आर्डर या पेशगी कीमत लेते हैं, परन्तु विज्ञापन के अनुसार न माल ही देते हैं, न कार्य ही करते हैं। विज्ञापन द्वारा किस तरह चोरी की जाती है, इसके लिये एक विज्ञापन के विषय में सुनी हुई बात इस प्रकार है
एक विज्ञापनबाज ने मक्खियों से बचने की दवा का विज्ञापन किया । उसने अपने विज्ञापन में लिखा- “ केवल