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में लूट कर ठग कर जाली नोट हुण्डी बना कर, झूठा दस्तावेज बना कर, राज्य का महसूल चुरा कर, ग्राहक से कपट द्वारा अधिक मुनाफा लेकर पड़ी हुई चीज - फल, रुपया, पैसा आदि दूसरे की मालिकी का जानते हुए उठा कर इत्यादि उपायों से दूसरे के हकों का अपहरण करना और लाभ उठाना, चोरी है । इसी प्रकार वस्तु में सम्मिश्रण करना, एक वस्तु बता कर दूसरी देना या लेना, कम देना, ज्यादा लेना, घूस देना - लेना भी चोरी है । ऐसे ही और भी कई उपायों से द्रव्य चोरी होती है ।
इस सभ्य कहलाने वाले युग में केवल उन्हीं उपायों से होने वाली चोरियों की गणना चोरी में है, जिन उपायों से कि चोरी करने पर, राज्य नियमानुसार दण्डित हो सके । जिन उपायों से चोरी करने पर राज्य - नियमानुसार दण्डित नहीं हो सकता, उनकी गणना चोरी में नहीं की जाती । लेकिन शास्त्रानुसार उस कार्य, बात, विचार की गणना भी चोरी में है, जिसके द्वारा दूसरे के हकों का अपहरण किया जावे, या उनसे अनुचित फायदा उठाया जावे । आज के कानून कुछ इने गिने उपायों द्वारा दूसरे के हक - हरण को ही चोरी में मान कर प्रकारान्तर से, चोरी के दूसरे सब मार्ग खुले कर दिये हैं । इसलिये चोरी के वे सभी उपाय निकले हैं, जिनके द्वारा चोरी करने वाले, दूसरे के हकों का अपहरण करने पर भी राज्य - नियम से दण्डित नहीं होते । सेंध लगाने, डाका डालने, ठगने, जेब काटने आदि राज्य - नियम से दण्ड्य उपायों द्वारा चोरी करने वाले, चाहे दो पैसे की भी चीज चुरावें, तब भी वे चोर कहलाते हैं और राज्य - नियमानुसार दण्डित होते हैं, परन्तु सभ्य उपायों द्वारा चोरी करने वाले, हजारों लाखों