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________________ (७६) हकों को आघात पहुंचता है, दूसरे के हकों का जिन कार्यों द्वारा अपहरण किया जाता है, दूसरा अपने हकों से वंचित रहता है, उन सब कार्यों की गणना कायिक-चोरी में है । इस प्रकार मन, वचन और काय के योग द्वारा, दूसरे के हकों का अपहरण करना, अपहरण करके उनका उपभोग करना, उनसे काम लेना, मन, वचन और काय द्वारा की गई चोरी कहलाती है। मन, वचन, काय, और इनके योगों द्वारा विशेषतः द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव की चोरी होती है । द्रव्य से तात्पर्य है, वस्तु का, फिर वह वस्तु चाहे सजीव हो या निर्जीव । क्षेत्र का अर्थ है, स्थान । जैसे घर, बाग, मार्ग आदि । काल का अर्थ है, समय । जैसे, शताब्दी, वर्ष, महीना, दिन आदि । भाव का अर्थ है विचार और कार्य । - चोरी विशेषतः दो प्रकार की होती है । एक तो वास्तविक मालिक की अनुपस्थिति में या उसकी असावधानी में । जैसे सेंध लगा कर, जेब काट कर, ताला खोल कर चोरी करना आदि । दूसरी, वास्तविक मालिक की उपस्थिति या असावधानी में भी । जैसे डाका डाल कर, मार्ग में लूट कर चोरी करना आदि । जिस वस्तु पर अपना अधिकार ही नहीं है, या जो वस्तु दूसरे के अधिकार की है, उसे बिना उस वस्तु के स्वामी की आज्ञा और इच्छा के ग्रहण करना, अपने उपभोग में लेना और लाभ उठाना, द्रव्य की चोरी है । फिर वह वस्तु, सजीव- जैसे मनुष्य, पशु, पक्षी, वनस्पति आदि हो, या निर्जीव-जैसे सोना, चांदी, रत्न, मकान, वस्त्र आदि । . सैंध लगा कर, जेब काट कर, डाका डाल कर, मार्ग
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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