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________________ ( ७१ ) बाधाएं उसका पथ रोकने में असमर्थ सिद्ध होती हैं । वह निर्भय सिंह की भांति निस्संकोच होकर अपने मार्ग पर अग्रसर होता चला जाता है । * * मनुष्य को जब तक अनुभव नहीं हो जाता, तब तक उसकी समझ में सत्य का महत्त्व नहीं आता । जब उसके सिर पर कोई ऐसी आपत्ति आ पड़ती है - जो सत्य का आश्रय लेने से उत्पन्न हुई हो तो तत्काल ही वह समझ जाता है कि सत्य का क्या महत्त्व है ! सत्य - मार्ग पर चलना तलवार की धार पर चलने के समान कठिन भी है और फूलों के बिछौने पर चलने के समान सरल भी है । इसमें प्रकृति की भिन्नता का अन्तर है। ऐसे मनुष्य भी हैं, जो अकारण ही असत्य बोलते हैं और सत्य व्यवहार को तलवार की धार पर चलने के समान कठिन मानते हैं । उनका बिश्वास है कि सत्य व्यव - हार करने वाला मनुष्य संसार में जीवित ही नहीं रह सकता । दूसरे ऐसे भी मनुष्य हो चुके हैं और हैं, जो असत्य व्यवहार करने की अपेक्षा, मृत्यु को श्रेष्ठ मानते हैं । सत्य - व्यवहार, उनके लिये फूलों की सेज है । फिर उस मार्ग में उन्हें चाहे कितने ही कष्ट हों, किन्तु वे उनकी परवाह किये बिना ही, प्रसन्नता पूर्वक अपने मार्ग पर चलते रहते हैं ।
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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