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________________ (७०) लेने की आवश्यकता नहीं है । तुम्हारी बात सत्य नहीं मानी जाएगी, यह विचार कर अगर भय किया तो इसका अर्थ यह हुआ कि तुम्हें सत्य पर पूर्ण विश्वास नहीं है । चिन्ता नहीं, अगर कोई तुम्हारे सत्य पर बिश्वास नहीं करता। भले ही तुम्हारे सत्य की लोग निन्दा करें, खिल्ली उड़ावें या सत्य के कारण भयंकर यातना पहुंचावें, परन्तु भय मत खाओ । अगर तुम भय खाते हो तो समझ लो कि तुम्हारे अन्तर के किसी न किसी कोने में सत्य के प्रति अश्रद्धा का कुछ भाव मौजूद है । सत्य पर जिसे पूर्ण श्रद्धा है, वह निडर है । संसार की कोई भी शक्ति उसे भयभीत नहीं कर सकती। तुम किसी से भी भय न करके सत्य ही सत्य का व्यवहार रखो तो तुम जान जाओगे कि मुझे ईश्वर मिल गया। ईश्वर की शरण में जाने का उपाय है-सत्य ! सत्य ईश्वरीय विधान है। तुम ईश्वर की शरण ले लोगे फिर किसी प्रकार का भय न होगा। भय का स्थान तो असत्य है । __ अगर आप अपने प्रत्येक जीवन-व्यवहार को सत्य की कसौटी पर कसें, सत्य को ही अपनावें और सत्य पर पूर्ण श्रद्धा रखें तो आप ईश्वर की शरण में पहुंच सकेंगे और आपका अक्षय कल्याण होगा। असत्य साहसशील नहीं होता । वह छिपना जानता है, बचना चाहता है, क्योंकि असत्य में स्वयं बल नहीं है । निर्बल का आश्रय लेकर कोई कितना निर्भय हो सकता है ? किन्तु सत्य अपने आपमें बलशाली है । जो सत्य को अपना अवलम्ब बनाता है, उसमें सत्य का बल आ जाता है और वह उस बल से इतना सबल बन जाता है कि विघ्न और
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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