SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६६). को अतिचार-रहित व्रत पालन करने और अतिचार न हो जाय, इस बात से सावधान रहने की आवश्यकता है । जिस प्रकार राज्य की सीमा होती है, ऐसे ही व्रत की सीमा अतिचार है । इन सीमानों का उल्लंघन करना व्रत का उल्लंघन है । व्रत का पूर्ण रूप से पालन तभी समझा जाता है, जब उसमें अतिचार न हो । यदि व्रत में अतिचार का का ध्यान न रखा गया तो व्रत अपूर्ण है । इस दूसरे व्रत को अतिचार-रहित पालन करने से श्रावक अपने आपके लिये सुगति का आयुष्य बांधता है क्योंकि इस व्रत को पूर्ण रूप से पालने पर श्रावक अन्य पापों से भी लगभग बच जाता है और पापों से बचना अपने आपको कूगति में डालने से बचाना है। अतः इस व्रत के पालने वालों का सदा कल्याण ही है । * * सत्य भगवान् है, इसलिए सत्य की आराधना करो । सत्य का आसरा गहो । सत्य. पर श्रद्धा रखो । सत्य का आचरण करो । मन से, वचन से और काया से सत्य की आराधना करो । सत्य भाषण करने से निडर बन जाओगे। सत्य बोलने से अगर कोई प्राण ले ले तो भी परवाह मत करो। कदाचित् तुम सोचो कि हमारी सत्य बात मानी नहीं जायगी, लेकिन अगर कोई सत्य पर विश्वास नहीं करता तो तुम्हारी क्या हानि है ? तुम अपने सत्य पर अटल रहो। असत्य के भय से सत्य को त्याग कर असत्य का आसग
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy