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________________ उपसंहार केवल श्रावकों का ही नहीं, मनुष्य-मात्र का कर्तव्य है कि वह मन, वचन और काया से सत्य का पालन करे । पशुओं में भी सत्य वर्तमान है, फिर मनुष्य-समाज सत्य से वंचित रहे, यह कितना बुरा है । इसलिये मनुष्य-मात्र को सत्य का पालन करना उचित है । ... श्रावकों के लिये इस व्रत का धारण करना अत्यावश्यक है। इस व्रत को धारण करने से वे झूठ के भयंकर पाप से बचे रह सकते हैं । बिना 'सत्य को अपनाये धर्म का पालन उचित रूप से नहीं हो सकता ।। स्थूल-झूठ के जो विभाग बतलाये हैं, वे श्रावक के लिये सर्वथा त्याज्य हैं । इन विभागों के बताने का तात्पर्य यह है कि गृहस्थी से प्रायः इन्हीं कारणों से झूठ बोला जाता है । इनका त्याग करने पर स्थूल-झूठ मात्र का त्याग हो जाता है और लौकिक व्यवहार में वह किसी प्रकार का असत्याचारी नहीं रहता। अतिचारों का उल्लेख, शास्त्रकारों ने इस अभिप्राय से किया है कि गृहस्थी में इन बातों का कार्य विशेष पड़ता है और असावधानी या भूल से इन कार्यों का हो जाना सम्भव है । इसलिये श्रावक को अपने व्रत में सावधानी रखने के वास्ते ही, अतिचारों का रूप बतलाया गया है । श्रावकों
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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