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पत्रों में झूठी खबरें देना, खोटे सिक्के, नोट हुण्डी श्रादि की रचना करना आदि -आदि बातें यदि असावधानी से हो जाय तो अतिचार है, अन्यथा अनाचार हैं। मान लीजिए - किसी ने कहा कि. अमुक बात ऐसी है, यद्यपि उस बात के सत्य होने का विश्वास नहीं है, लेकिन इस प्रकार ऐसा कहने वाले के विश्वास पर उस झूठी बात को समाचार पत्र में छपवा दिया जाय तो अतिचार है । किन्तु यह मालूम होते हुए भी कि यह बात सत्य है, यदि ऐसा किया तो अनाचार है । इसी प्रकार दस्तावेज आदि के विषय में भी समझना चाहिए |
आजकल झूठे लेख लिखना, झूठा दस्तावेज बनाना झूठे सिक्के प्रादि बनाना विशेष सुनाई देता है । यदि विचारा जाय तो इसका मूल कारण लोभ के सिवाय कुछ न होगा । लोभ के वश होकर ही लोग सत्यासत्य का विचार नहीं करते और इसी से ऐसा करने में नहीं हिचकचाते । जाली दस्तावेज बना कर, एक के दो या और ज्यादा लिख-लिख कर गरीबों के गले काटने को ही, बहुधा श्राजकल के लोगों ने व्यापार मान रखा है । ऐसा करने वाले इस बात को नहीं विचारते कि इस तरह से द्रव्योपार्जन करके हम कितने दिन आनन्द उड़ा सकते हैं और ऐसा आनन्द उड़ाने का परिणाम क्या होगा ? ऐसा करने से संसार में तो अपकीर्ति होती ही है लेकिन उस लोक में भी, जहां कि अन्त समय तक सबको जाना पड़ता है, सुख प्राप्त नहीं होता, किन्तु भयंकर कष्ट प्राप्त होना स्वाभाविक है । ऐसे भाइयों को यह ध्यान में रखना चाहिए, कि सत्य के व्यापार से यदि लाभ कम भी हुआ तो वह उतना ही लाभ सांसारिक कार्य