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________________ या कहने के प्रथम ही उससे इस बात का कहा जाना किमैं भी ऐसा ही गरीब था, लेकिन अमूक धर्म को छोड़ कर अमुक धर्म में चले जाने से, झूठ बोलने से या जुआ खेलने से मालदार हो गया । इस प्रकार के मिथ्या-उपदेश द्वारा अपनी संख्या बढ़ाने के लिये या और किसी कारण से उसे सत्य से दूर करके असत्य के गड्ढे में गिरा दिया जाता है । अहम्मन्यता के लिये भी बहुत लोग ऐसे ही उपदेश देकर लोगों को अपने चंगुल में फंसाये रखना चाहते हैं । ऐसा करने वाले स्वार्थ-वश कृत्याकृत्य का भी विचार नहीं करते । लेनिक मिथ्या उपदेश का प्रभाव सदा नहीं रहता, कभी न कभी मिटता ही है । फिर जिसे भी यह मालूम हो जाता है कि इन उपदेशों से मुझे भ्रम में डाला गया था, वह उसी क्षण से उस ( इस प्रकार भ्रम में डालने वाले ) को घृणा की दृष्टि से देखने लगता है । ऐसा उपदेश, जो सत्य नहीं है और जिसके सुनने से सुनने वाला सत्य से पतित होता है, या बुरे कार्य में प्रवृत्त होता है, ‘मोसुवएसे' है । श्रावक को इस अतिचार से बचने के साथ ही ऐसे उपदेशकों पर विश्वास करने से भी बचना चाहिए। ५- कूडलेहकरणे जाली-लेख, किसी दूसरे के अक्षर सरीखे अक्षर, नकली छाप मुहर आदि बनाना 'कूटलेखकरण' है । . वे बातें, जिनकी गणना झूठ में हैं, लेखनकला द्वारा कार्य रूप में परिणत करना · कूटलेखकरण' अर्थात् झूठालेख लिखना कहलाती हैं । झूठे दस्तावेज लिखना, समाचार
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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