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है कि स्त्रियों की स्तुति स्वयं इन्द्रों ने की है और उन्हें साक्षात् देवी कह कर त्रिलोक में उत्तम बतलाया है । त्रिलोकीनाथ को जन्म देने वाली स्त्री ही है । भगवान् महावीर जैसे को उत्पन्न करने का सौभाग्य इन्हीं को प्राप्त मनु ने भी कहा है
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यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः । "
जहां पर स्त्रियों का सत्कार होता है, वहां देवता आकर रमण करते हैं अर्थात् वह घर स्वर्ग बन जाता है ।
जिन स्त्रियों का इतना महत्त्व है, उन्हें तुच्छ समझ कर अपमानित करने से पुरुष सुखी कैसे बन सकते हैं ? सुखी होना तो स्त्रियों की उन्नति और उनके सत्कार पर ही निर्भर है । चाणक्य ने कहा है
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" दाम्पत्यकलहो नास्ति तत्र श्रीः स्वयमागता ।
जहां दम्पती ( पति - पत्नी ) में कलह नहीं रहता है, यानी एक दूसरे को सन्मानपूर्ण दृष्टि से देखते हैं, अपमानित नहीं करते है, वहां लक्ष्मी आप ही आकर विराजमान होती है ।
स्त्रियों की उच्चता और लज्जा को दृष्टि में रख कर ही शास्त्रकारों ने उनकी किसी गोपनीय बात को दूसरे के सामने प्रकट करने से पुरुषों को मना किया है । इसके लिये चाणक्य ने भी अपनी नीति में कहा है
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"अर्थनाशं मनस्तापं, गृहिणीचरितानि च । वञ्चनं चापमानं च मतिमान्न प्रकाशयेत् ॥”