SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६१ ) बल्कि यहां तक तुच्छ समझते हैं कि स्त्री को पैर की जूती कहने तक नहीं हिचकिचाते । इस कारण स्त्रियों से किसी प्रकार की सम्मति लेना तो दूर रहा, उनकी गोपनीय बातों को भी प्रकट करने में कुछ विचार नहीं रखते । लेकिन ऐसा समझना पुरुषों की उद्दण्डता के सिवाय कुछ नहीं कहला सकता । स्त्रियों को इस दर्जे तक तुच्छ समझने वाला स्वयं तुच्छ बुद्धि का है । वह इस बात को नहीं विचारता, कि यदि स्त्री पैर की जूती है तो उससे हथलेवा जोड़ते समय मित्र के नाते जोड़ा या जूती से ? स्त्रियों को इस प्रकार समझ लेने से ही आज भारत के प्राचीन गौरव से लोग हाथ धो बैठे हैं । जिस समय भारत उन्नति की चरम सीमा पर पहुंचा था, उस समय का इतिहास देखने से पता लग सकता है कि स्त्रियों को कितनी ऊंची दृष्टि से देखा जाता था और समाज में उनका कितना ऊंचा स्थान था । उसके बाद जैसे-जैसे पुरुष स्त्रियों का सन्मान कम करते गये, वैसे ही वैसे वे स्वयं अपने सन्मान को भी नष्ट करते गये । राष्ट्र में नवीन चैतन्य ग्राना स्त्रियों की उन्नति पर निर्भर है । कई लोगों ने स्त्री - समाज को पंगु समझ रखा है, या कहो कि पंगु बना रखा है । यही कारण है कि यहां के सुधार - प्रान्दोलनों में पूरी सफलता नहीं होती । यदि स्त्रियों को इस प्रकार तुच्छ न समझकर उन्हें उन्नत बना दिया जाय, तो जो सुधार - प्रान्दोलन आज अनेक प्रयत्न करने पर भी असफल रहते हैं, उन्हें असफल होने का सम्भवतः कोई कारण ही न रहे । स्त्रियों की शक्ति कम नहीं है । जैन - शास्त्र में वर्णन
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy