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(६०) केवल बातें करते देख कर उन पर सन्देह करने तथा वैसे लोगों के आगे प्रकट करने में प्रायः नहीं हिचकिचाते और कलंक लगाने लगते हैं । लेकिन विचारशील मनुष्य को इस दुर्गुण से दूर रहना चाहिये ।
इस दूसरे अतिचार और पहिले अतिचार में यह अंतर है कि पहिले अतिचार में एकदम दोषारोपण किया जाता है और इस दूसरे अतिचार में किसी प्रकार का सन्देह पाकर दोषारोपण किया जाता है ।
सन्देह के आधार पर कलंक लगाने का दोष पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में विशेष देखा जाता है। उनमें अधिकांश को कोई कार्य तो रहता नहीं, इसलिये जरा सी बात को चाहे वह सत्य हो या झूठ, विशेष समय तक घोटती रहती हैं ।
व्रतधारी श्रावक को इस प्रकार किसी को एकान्त में बात करते देख कर सन्देह लाना और दोष लगाना उचित नहीं है।
३- सदारमन्तभेए अपनी स्त्री ने जो कुछ मर्म-भरी बात कही हो, जिसे छिपाने की आवश्यकता है या स्वयं ने उससे जो कुछ कहा हो, दूसरे के आगे उसका प्रकाश करना ‘सदारमन्तभेय' कहा जाता है । ऐसा करने से लज्जावश उस स्त्री का, अपनी या दूसरे की हत्या कर देना आदि अनर्थ-परम्परा का होना सम्भव है । इसलिये सत्य होने पर भी ऐसा करना अतिचार है।
आज के पुरुष स्त्रियों को कुछ समझते ही नहीं है,