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________________ ( ५६ ) लिये भी यह सुनाई पड़ता है कि प्रायः घर के ही लोग एक दूसरे को झूठे दोष लगा कर नीचा दिखाने का उपाय किया करते हैं । यह कितना नीच कार्य है । व्रतधारी श्रावकों को इस प्रतिचार से अवश्य ही बचना चाहिये । सब संसार ही ऐसा करता है, यह विचारना उचित नहीं है । संसार चाहे सुधरे या न सुधरे, आप अपने कर्त्तव्य का पालन करते जाइये । जिस प्रकार जूता पहिनने वाला मनुष्य पृथ्वी पर कांटे का अस्तित्व देखना अनावश्यक समझता है, इसी प्रकार आप भी विचार लीजिये कि मैंने व्रत ग्रहण किया है । इसलिये लोग चाहे खयाल रखें या न रखें, मुझे तो खयाल रख कर इस दोष से बचना ही चाहिये । अर्थात् बिना सोचे समझे अन्य लोगों की तरह किसी के सिर एकदम दोष न मढ़ देना चाहिये । तलवार का घाव अच्छा हो सकता है, लेकिन झूठे कलंक का भयंकर घाव उपाय करने पर भी अच्छा होना कठिन हो जाता है । इसलिये किसी को झूठा कलंक लगाने का घृणित कार्य कर्भी न करना चाहिये । २ - रहस्तभक्खाणे एकान्त में बैठे किसी विषय का विचार करते हुए मनुष्यों को देख कर उनकी बात के विषय में असत्य अनुमान बांध कर कहना कि ये राज्यविरोधादि विषय की बातचीत करते होंगे, 'रहस्सब्भक्खाणे ' है । आज की जनता में उक्त दोष बहुत देखा जाता है । कोई स्त्री पुरुष चाहे वे आपस में बहिन-भाई ही हों, यदि एकान्त में बात करते हों तो लोग बिना विचार किये ही
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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