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________________ ( ५८ ) देना अत्यन्त अनुचित है । लोग यदि इस अतिचार का अर्थ भलीभांति समझ लेते तो यह दुर्गुण दिखाई न देता। अब भी यदि इस पर विचार किया जाय तो दोष मिट सकता है। आज के लोग और किसी बात में तो चाहे निरंकुश न रहते हों, परन्तु जीभ पर अंकुश रखने का प्रयत्न तो शायद ही करते होंगे । सम्भवतः इसी कारण किसी से कोई दोष हुना हो या न हुआ हो, उस पर सहसा दोषारोपण कर दिया जाता है । उचित तो यह है कि यदि किसी में कोई दुर्गुण दिखाई भी पड़े तो नम्रता-पूर्वक उसे सूचित करके भविष्य के लिये सावधान कर दिया जाय । लेकिन इसके विपरीत दूसरों के दोषों का ढिंढोरा पीटने में प्रायः लोग अपना गौरव समझते हैं । आज इस दुर्गुण की सहायता के लिए साधन भी खुब मिल जाते हैं । दो पैसे के कार्ड या समाचार-पत्र द्वारा किमी के छोटे या निर्मूल दोष को संसार के सन्मुख बढ़ा कर रख देना सहज हो गया है। जिनका कार्य अधर्म पर चलते हुए किसी मनुष्य को अपनी सत्ता से धर्म पर लाने का और निष्पक्ष होकर न्याय देने का था, उन पंचायतों को भी आज, पक्षपातपूर्ण न्याय करते और किसी के द्वारा लगाये गये दोष की सत्यता का विचार किये बिना ही, एकदम उसको अपराधी मान लेते सुना जाता है । सम्भवतः उन्हें भी इसी प्रकार से खाने आदि का लोभ, या दूसरे को नीचा दिखाने का विचार रहता होगा । लेकिन यह कार्य पंचायतों के लिये अशोभनीय है। पंचायतों के लिये ही नहीं, किन्तु घर के लोगों के
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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