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________________ सत्य व्रत के अतिचार श्रावक के स्थूल मृषावाद विरमण व्रत के पांच प्रतिचार हैं । आवश्यक सूत्र में श्रावक को स्थूल मृषावाद का त्याग बतलाने के साथ ही कहा है " थूलगमुसावायवेरमणस्स · समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियब्वा न समायरियव्वा । तंजहासहस्सब्भक्खाणे रहस्सब्भक्खाणे सदारमंतभेए मोसुवएसे कूडलेहकरणे ।" , “स्थूल-मृषावाद विरमण व्रत के, जिसको श्रावक के लिए धारण करने का विधान है, पांच अतिचार है । इन पांचों के नाम (१) सहस्सब्भक्खाणे, (२) रहस्सब्भक्खाणे, (३) सदारमंतभेए, (४) मोसुवएसे, (५) कूडलेहकरणे हैं । ये अतिचार श्रावक के जानने योग्य हैं, लेकिन आचरण करने योग्य नहीं हैं । इसीलिए श्रावक को इनसे बचना उचित है।" शास्त्रकार ने किसी त्याज्य कार्य के करने का विचार लाने को अतिक्रम, कार्य-पूर्ति के लिए साधन एकत्रित करने को व्यतिक्रम, कार्य की बिल्कूल तैयारी हो लेकिन अभी किया नहीं है उसे अतिचार और पूर्ण कर डालने को अनाचार कहा है । अर्थात् व्रत के उल्लंघन करने की चार कक्षाएं हैं।
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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