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(५५) बढ़ जाती है । यही वात झूठी साक्षी देने के विषय में भी है।
झूठी साक्षी में भी द्रव्य, क्षेत्र आदि के विचार से त्याग करना आवश्यक है।
यद्यपि धरोहर के विषय में झूठ और झूठी साक्षी, पहिले तीन प्रकार (कन्नालिए, गवालिए, भोमलिए) के झूठ के अन्तर्गत आ जाते हैं, लेकिन इन्हें विशेष निंद्य समझ कर शास्त्रकारों ने इनका वर्णन पृथक्-पृथक् किया है । श्रावक को, वर्णन किये हुए इन पांचों प्रकार के स्थूल मृषावाद को समझ कर इनका त्याग करना और स्थूल मषावाद विरमण व्रत को धारण करना उचित है । इस दूसरे व्रत के अतिचारों का वर्णन आगे किया जाता है ।
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