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मूल वाणी है, क्योंकि सब बातें शब्दों से ही जान कर की जाती हैं । जो वारणी को चुराता है अर्थात् अन्यथा कहता है, वह सब भांति की चोरी करने वाला होता है ।
" ब्रह्मघ्नो ये स्मृता लोका, ये च स्त्रीबालघातिनः । - मित्रद्र हः कृतघ्नस्य, ते ते स्युबवतो मृषा ॥
ब्राह्मण, स्त्री और बालक को हत्या करने वाले को, मित्रद्रोही तथा कृतघ्नी को जो लोक मिलते हैं, वे ही लोक झूठी गवाही देने वाले को मिलते हैं। वहां लोक शब्द से मतलब है गति का ।
तात्पर्य यह है कि झूठी साक्षी देना मनु ने भी महान् पाप माना है।
जिस मनुष्य पर जनता विश्वास करती है, वह यदि किसो के सच्चे सोने को नकली बतलावे, अथवा किसी के नकली सोने को सच्चा बना कर खरीदवावे, तो शास्त्र कहता हैं कि ऐसा करने वाला सोने के वर्तमान और भावी स्वामी को अन्तराय ( दुःख ) देने का अपराधी है क्योंकि ऐसा होने पर उस असली सोने के स्वामी तथा नकली सोने के खरीददार की आत्मा को बड़ी चोट पहुंचती है और प्रायः या तो वे उस ऐसा बताने वाले को हानि पहुंचाने की चेष्टा करते हैं, या स्वयं धसका खाकर मर जाते हैं। इसके सिवाय इस प्रकार झूठ बताने वाला अपनी प्रामाणिकता को भी तिलांजलि देता है । इसके विरुद्ध यथार्थ बात कहने पर न तो प्रामाणिकता को ही धक्का लगता है और न उपरोक्त दोष की ही सम्भावना रहती है । बल्कि उसकी प्रामाणिकता