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( ५३ ) रखे ही मांगने के लिए जो मिथ्या भाषण किया जाता है, वह धरोहर विषयक झूठ कहलाता है। यद्यपि इसकी गणना चोरी में हो सकती है और मनु ने इसे चोरी में ही माना है, जैसे
" यो निक्षेपं नार्पयति, यश्चानिक्षिप्य याचते । तवुभौ चौरवच्छास्यौ दाप्यौ वा तत्सम दमम् ॥
जो रखी हुई धरोहर को न देवे और जो बिना रखे मांगे, वे दोनों चोर के समान ही दण्डनीय हैं ।
लेकिन जैन शास्त्रों ने, क्योंकि यह कार्य मुख्यतया झूठ बोलने से ही होता है, इस कारण इसे झूठ में माना है । गौण रूप में यह चोरी भी है ।
इसमें भी पूर्व वर्णनानुसार द्रव्य, क्षेत्र आदि के विचार से त्याग करना आवश्यक है ।
५- कूडसक्खिजे अर्थात् झूठी साक्षी . किसी दूसरे के या अपने लाभ के लिये अथवा दूसरे की हानि के लिए न्यायाधीश, पंचायत संघ आदि के सन्मुख जो मिथ्या भाषण किया जाता है वह मिथ्या भाषण, झूठी साक्षी कहलाता है । झूठी साक्षी देना निन्द्य कार्य है और घोर पाप है । मनु ने झूठी साक्षी देने वाले के विषय में कहा है"वाच्यार्था निहताः सर्वे वाङ मूला वाग्विनिःसृताः । तास्तु यः स्तेनयेद्वाच्यः स सर्वस्तेयकृन्नरः ॥"
शब्दों ही में वाच्य, भाव से नियत हैं और शब्दों का