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इसे आदि लेकर सब पशुओं के लिए झूठ न बोलने का शास्त्र का उपदेश है ।
कन्या के समान गौ के लिये भी, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव में त्याग करना आवश्यक है । जैसे अच्छी या बुरी गाय को बुरी या अच्छी बताना, कम या ज्यादा दूध " देने वाली गाय को ज्यादा या कम दूध देने वाली बताना, एक देश की गाय को दूसरे देश की गाय बताना और सीधी या चिट्टी मारने वाली, गाय को मारने वाली या सीधी बताना आदि ।
३ - भोमालिए अर्थात् भूमि के विषय में झूठ
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भूमि विषयक झूठ के त्याग में भूमि के साथ ही उन सब वस्तुओं के विषय में झूठ बोलने का त्याग आ जाता है, जिनकी उत्पत्ति भूमि से है । फिर चाहे वे सचेतन हों या अचेतन । जैसे फल, वृक्ष आदि सचेतन और प्राय: सोना, चांदी, पत्थर, मिट्टी, घर आदि प्रचेतन । इसीलिये भूमि के साथ ही, भूमि से उत्पन्न होने वाली और उससे बनी हुई वस्तु मकान, नोहरा, महलादि सम्बन्धी झूठ का भी त्याग समझना चाहिए क्योंकि भूमि आधार है और उस पर के या उससे उत्पन्न होने वाले पदार्थ आधेय हैं । आधार को ग्रहण करने से आधेय का भी ग्रहण स्वयं हो जाता है ।
इसमें भी कन्या और गौ विषयक झूठ-त्याग के समान द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के विचार से त्याग करना आवश्यक है ।
४ - नासावहारे अर्थात् धरोहर के विषय में झूठ
किसी की रखी हुई धरोहर को न लौटाने या विना