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(४६) करने का अर्थ यह नहीं है कि अन्य पुरुषों की रक्षा ही न की जाय । इसी तरह यहां कन्नालिए का अर्थ यह नहीं है कि केवल कन्या ही के विषय में झूठ न बोला जाय । संकटापन्न जहाज से जैसे कन्या को आदि लेकर सब मनुष्यों की रक्षा की जाती है, ऐसे ही कन्या को प्रादि लेकर मनुष्य-मात्र के विषय में झूठ का त्याग करना, ऐसी शास्त्राज्ञा है ।
जो मनुष्य कन्या के विषय में झूठ बोलता है, वह मातृ-पक्ष का घोर विरोध करता है । इस महा पाप से बचने के लिये ही शास्त्र में कन्या का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए कहा है कि द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से कन्या के लिए झूठ न बोले । जो इस प्रकार है
द्रव्य से तात्पर्य यह है कि कन्या रूपवती हो, सुन्दर हो, अंग, उपांग में किसी प्रकार का दोष न हो, उच्च वर्ग की हो, परन्तु स्वार्थवश या और किसी कारण से उसे कुरूपा, अंगहीना ग्रादि, वास्तव में जो है उसके सर्वथा या न्यूनाधिक विपरीत क्तला देना, या कन्या में किसी प्रकार उक्त दोष होते हुए भी उन्हें प्रकट न करके उसे निर्दोष एवं सुरूपा बताना ।
क्षेत्र से मतलब यह है कि, कन्या है तो किसी दूसरे प्रान्त या गांव की और उसे बतलाना किसी दूसरे ही प्रान्त या गांव की।
__ काल से यह अर्थ है कि वास्तव में कन्या जिस उम्र की हो, उससे कम या अधिक बताना ।।
भाव से तात्पर्य यह कि चतुर कन्या को मूर्ख या मूर्ख को चतुर बताना, कन्या में जो गुण या दुर्गुण हैं, उन्हें छिपाना या न्यूनाधिक बताना ।