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से किसी काम में बाधा नहीं पा सकती, बल्कि सत्य न बोलने से बाधा संभव है।
जो भारतवर्ष किसी समय सत्य के लिये प्रसिद्ध था, वही इस समय झूठ के लिये प्रसिद्ध सुना जाता है। पाश्चात्य देश वाले, जब वे बहुत वर्ष पूर्व भारत की यात्रा करने आये थे, तब उन्होंने अपने यात्रा-वृत्तान्त में लिखा है कि "भारत के लोग भूल कर भी झूठ का प्रयोग नहीं करते और पराई वस्तु को मिट्टो के समान मानते हैं, अर्थात् छूते तक नहीं । यही कारण है कि भारत के लोग अपने घरों में ताले नहीं लगाते ।" आज उसी देश के लोग अपने भारत यात्रा-वृत्तान्त में लिखते हैं कि " भारत के लोग झूठ बोलने में तनिक भी नहीं हिचकिचाते और नैतिक-जीवन में बहत गिरे हए हैं।" यद्यपि यह बात सर्वांश में सत्य नहीं है, क्योंकि भारत में आज भी कई ऐसे-ऐसे महानुभाव हैं, जो कदापि झूठ नहीं बोलते, लेकिन पूर्वकाल में जितने सत्यवादी थे, उतने इस काल में दिखाई नहीं देते, इसी से ऐसा कहने का मौका मिलता है । भारतीयों को अपना यह कलंक मिटा देना उचित है ।
यदि मनुष्य झूठ को त्याग दे और सत्य को अपना ले, तो आज दिन अदालतों की सीढ़ियों पर उन्हें प्रायः नित्य चक्कर काटना होता है, जिन वकीलों का घर अपनी गाढ़ी कमाई के पैसे से भरना होता है, उनकी खुशामद करनी होती है और अनेक कष्टों का सामना करना होता है, उन सब से बच जाय । सत्य के न होने से ही वकील, वैरिस्टर और अदालतों का काम चल रहा है । यदि सब लोग सत्य को अपना ध्येय बना लें तो अदालतों और वकील, वैरिस्टर