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________________ ( ४१) में त्याग हो ही जाता है, इसलिए बुद्धिमान् लोग झूठ के भेद न बताने की बात का समर्थन नहीं कर सकते । श्रावक के लिए इस स्थूल-मृषावाद विरमण व्रत का धारण करना उचित और आवश्यक है । इस व्रत के घारण करने पर सांसारिक कार्यों में किसी प्रकार की बाधा नहीं हो सकती, बल्कि सांसारिक मार्ग सरल हो जाता है । इस व्रत के पालने वालों पर लोग विश्वास करने लगते हैं तथा इस व्रत के धारण करने पर झूठ बोलने के पाप से भी बहुत अंश में बच जाते हैं। सत्य से क्या लाभ है और झूठ से क्या हानि है, वह तो पहिले बहत समझाया जा चूका है । अब भी यदि कोई यह कहे कि हमारा सांसारिक कार्य झठ के बिना केवल सत्य से नहीं चल सकता, तो वह उसका भ्रम है । सत्य से काम नहीं चल सकता, झठ से ही काम चलता है, यह सर्वथा गलतफहमी है । पहिले तो संसार में संभवतः कुछ लोग ऐसे भी मिलेंगे जो अपना काम सत्य से चलाते हैं, झूठ को पास भी नहीं आने देते । दूसरे यदि सत्य से काम नहीं चल सकता तो झूठ ही झूठ से भी नहीं चल सकता । कोई मनुष्य आजन्म झूठ न बोलने की प्रतिज्ञा कर ले तो उसके कार्यों में बाधा न होते हुए वह निर्विघ्न अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ रह सकता है, परन्तु यदि कोई सत्य न बोलने की प्रतिज्ञा करे, तो उसका कार्य कुछ घण्टे तक भी नहीं चल सकता। उदाहरणार्थ लगी तो है भूख, परन्तु कहे, कि मेरा पेट भरा है, तो वह कब तक जीवित रह सकेगा ? पेट दुख रहा है, लेकिन पैर का दर्द बतावे, तो अन्त में उसे सत्य बोलने के लिए बाध्य होना ही होगा। सारांश यह कि सत्य बोलने
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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