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(३६) व्रत बतलाया है, जिसमें श्रावक के संसार-व्यवहार में भी बाधा, न पहुंचे और वह व्रत का पालन भी कर सके । श्रावक के अहिंसा व्रत में केवल स्थूल हिंसा का ही त्याग होता है । गृहस्थाश्रम पालने वाला गृहस्थ स्थूल सूक्ष्म का विचार न करके स्थल के बदले सूक्ष्म हिंसा का पहिले ही त्याग करने जाता है तो वह ऐसा चक्कर में पड़ता है कि सूक्ष्म हिंसा का व्रत तो नहीं पालता सो नहीं पालता, लेकिन स्थूल हिंसा के त्याग से भी पतित हो जाता है । इसलिए बुद्धिमान् लोग पहले अहिंसा व्रत को धारण करके स्थूल पाप को छोड़ते हैं और फिर जब वे गृहस्थी के कार्यों को छोड़ देते हैं, तब सूक्ष्म अहिंसा व्रत को धारण करके सूक्ष्म पापों का भी त्याग करते हैं ।
जिस प्रकार अहिंसा में स्थूल और सूक्ष्म के भेद किये गये है, उसी प्रकार सत्य में भी स्थल और सूक्ष्म के भेद बतलाये हैं । स्थूल बातों के लिये झूठ बोलना स्थूल झूठ और सूक्ष्म रीति से झूठ बोलना सूक्ष्म झूठ कहा जाता है ।
___ श्रावक को जैसे अहिंसा-व्रत में स्थूल हिंसा का त्याग बताया गया है उसी तरह सत्यव्रत में भी स्थूल मषावाद का त्याग बताया गया है । जिस कार्य, बात या विचार को संसार व्यवहार में कहा जाता है कि यह झूठ है और जिससे किसी जीव को अकारण ही दुःख होता है, उसे स्थूल झूठ कहते हैं । शास्त्र में श्रावक के इस दूसरे व्रत-सत्य के धारण और स्थूल झूठ त्याग को स्थूल-मृषावाद-विरमणव्रत कहा है।
गृहस्थ सूक्ष्म मृषावाद से नहीं बच सकते । इसलिए सूक्ष्म मषावाद का त्याग गृहस्थ श्रावकों को न बतला कर