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________________ [ ३७ ] अर्थात्-झूठ का व्यवहार फिर उसी तरह नहीं हो सकता, जैसे लकड़ी की हांडी दूसरी बार नहीं चढ़ सकती। अाजकल के लोग सत्य का महत्त्व भूल जाने के ' कारण व्यापारादि कार्यों में तो स्वार्थवश झूठ का प्रयोग करते ही हैं, परन्तु धर्म-कार्यो में भी झूठ को स्थान देने से नहीं हिचकते और जहां स्वार्थ भी नहीं है, ऐसी जगह अर्थात् हंसी-मजाक आदि व्यर्थ की बातों में भी झूठ की भरमार रखते हैं । लेकिन इस प्रकार का झूठ का प्रयोग करने से न तो वारणो में ही तेज रहता है, न संसार में कोई विश्वास ही करता है । जहां सत्यवादी के केवल संकेत-मात्र पर भरोसा किया जाता है, वहां झूठे के दस्तावेजों पर भी विश्वास करने में लोग हिचकते हैं । झूठ बोलने वाले का इतना अविश्वास हो जाता है कि फिर उसके विश्वास पर कोई कार्य नहीं छोड़ा जाता । व्यवहार सूत्र में कहा है कि ___ अन्य अपराधों की सरलतापूर्वक आलोचना कर लेने पर, सूत्रोक्त विधि के पश्चात् उस साधु को आचार्यादिश्रेष्ठ पदवी दी भी जा सकती है, लेकिन गाढ़ागाढ़ कारण होते हुए भी जो साधु कपट-युक्त झूठ बोले, शास्त्रविरुद्ध प्ररूपणा करे, वह आजीवन ऐसी किसी पदवी को पाने का अधिकारी नहीं हो सकता। झूठ सब पापों से बढ़कर पाप है और सत्य सब धर्मों से बढ़कर धर्म है । संसार के अन्य पाप विशेषतः सत्य को न.समझने से ही होते हैं, इसलिए बुद्धिमान् लोग झूठ को त्याग कर सत्य को अपनावें ।
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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