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( ३६) रहा, मित्र से भी झूठ बोलने में संकोच नहीं करते। ऐसे लोग, इस बात को बिलकुल भूल जाते हैं कि असत्यः · की विजय नहीं होती, विजय सत्य की ही होती है । यद्यपि युधिष्ठिर ने स्वयं दुर्योधन को अजेय होने को युक्ति बता दी थी और वह यूक्ति असत्य नहीं थी, फिर भी सत्य की विजय होने के लिए, दुर्योधन को मार्ग में कृष्ण मिल गये और उसे पराजित होना पड़ा। इसी प्रकार, सत्य की विजय और असत्य की पराजय होने के लिये, कुछ न कुछ कारण उत्पन्न हो ही जाया करते हैं ।
सत्य बड़ा ही महत्त्वपूर्ण और कल्याणकारक सिद्धान्त है। इसके पालन करने वाले को तो सदैव आनन्द है ही, किन्तु जो व्यक्ति सत्य का पालन करने वाले व्यक्ति के सम्पर्क में एक बार भी आ जाता है और उसकी एक भी शिक्षा ग्रहण कर लेता है, वह भी भविष्य में अपना कल्याण-मार्ग पा जाता है।
परलोक के लिये तो सत्य सुखदायक और झूठ दुखदायक है ही, परन्तु इस लोक में सत्यवादी की प्रशसा और भूठे की निन्दा होती है । इसके सिवाय भूठ सदा चल भी नहीं सकता । एक समय सम्भव है कि झूठ द्वारा किसी को धोखा दे दिया जाय, परन्तु दूसरे समय, वह झूठा मनुष्य धोखा देने में समर्थ न होगा बल्कि झूठे मनुष्य की सच्ची बात पर भी सहसा कोई विश्वास नहीं करेगा। इसके लिए एक कवि ने भी कहा है
फेर न हहैं झूठ से, जो करिही व्यवहार । जैसे हांडी काठ की, चढ़े न दूजी बार ॥