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________________ ( ३३ ) युधिष्ठिर सदैव सत्य बोलते हैं, कभी असत्य भाषण नहीं करते, अतः अविश्वास करने का कोई कारण भी न था। गांधारी ने एक दृढ़-दृष्टि से दुर्योधन को देख लेना स्वीकार किया। तब दुर्योधन एक कमल-कोपीन लगाकर उसके सामने आ खड़ा हुआ । गान्धारी ने एक दृढ़-दृष्टि से दुर्योधन के शरीर की ओर देख लिया। इससे उसका सारा शरीर तो वज्र के समान कठिन हो गया, किन्तु जो स्थान ढका हया था, वह कच्चा रह गया । दुर्योधन ने सोचा कि - इस स्थान के कच्चे रह जाने से मेरी क्या क्षति हो सकती है ? यह स्थान तो धोती के भीतर रहता है । इस पर कौन चोट करने जाता है ? यह विचार कर, वह बाहर निकल पाया और पांडवों के पास जाकर, दूसरे दिन भीम से गदायुद्ध करने की बात तय की । गान्धारी के नेत्रों में ऐसी शक्ति होने का कारण, उसका पतिव्रत धर्म ही था । उसने अपने नेत्रों से कभी भी किसी परपुरुष को बुरी दृष्टि से नहीं देखा था । पतिव्रता स्त्री के नेत्रों में यह शक्ति होती है कि यदि वह किसी को पुत्र की तरह प्रेम की दृढ़- दृष्टि से देख ले तो उसका शरीर वज्रमय हो जाय और यदि क्रोध की दृष्टि से देख ले तो भस्म हो जाय । मनुष्य यदि चाहे, तो अपने नेत्रों और वाणी में, सत्य से ऐसी शक्ति पैदा कर सकता है क्योंकि असत्य स्थान पर दृष्टि न डालने और असत्य भाषण न करने से वागो और नेत्रों में ऐसी शक्ति उत्पन्न हो सकती है कि नेत्र से जिसे देख ले, उसका शरीर वज्र सा दृढ़ हो जाय, य। भस्म हो जाय और वाणी से जो कुछ कह दे, वही पूरा हो जाय ।
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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