________________
( ३४)
प्रायः पूर्वकाल के लोगों की वाणी में वह शक्ति होती थी कि वे जिसके लिये जो कुछ कह देते थे, वही हो जाता था । उनका आशीर्वाद या शाप, मिथ्या नहीं होता था । वे लोग सत्य का पालन करते और बात-बात में न तो किसी को आशीर्वाद ही देते थे, न शाप ही । आज के लोग दिनरात दूसरे का बुरा-भला चाहा करते हैं, अर्थात् आशीर्वाद । या शाप दिया करते हैं, परन्तु कुछ नहीं होता। इसका कारण यही है कि सत्य को न पहिचानने से उनकी वाणी निस्तेज हो जाती है। यदि सत्य को पहिचान लें तो, न तो वे इस प्रकार किसी का भला बुरा ही चाहें और न चाहा हुआ भला-बुरा निष्फल हो हो।
दूसरे दिन दुर्योधन और भीम का गदा-युद्ध हुआ । भीम ने अपनी पूरी शक्ति से दुर्योधन के सिर, पीठ, छाती, भुजा आदि स्थानों पर गदा-प्रहार किये, किन्तु सब निष्फल। गदा लगती और टकरा कर लौट आती । दुर्योधन का बाल भी बांका न होता । इसी समय भीम को अपनी प्रतिज्ञा याद आई कि मैंने द्रोपदी के चीरहरण के समय दुर्योधन की जङ्घा चूर्ण करने को प्रतिज्ञा की थी। बस, फिर क्या था। तत्क्षण उसने अपनी गदा का प्रहार दुर्योधन की जङघा पर किया । जङ्घा कच्ची तो रह ही गई थी, गदा लगते ही चूर्ण हो गई और दुर्योधन गिर पड़ा।
___ यह कथा बहुत लम्बी है । इसे यहीं छोड़ कर यह विचारना है कि युधिष्ठिर का यह व्यवहार कैसा कहा जा सकता है, जो शत्रु को भी उचित और सत्य सलाह ही देते हैं।
जो मनुष्य सत्य-व्रत के पालने वाले हैं, वे अपनी शरण में आये हुए शव के साथ भी दुष्टता का व्यवहार नहीं करते।